प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: सिर्फ नाम का है विद्यालय. पढ़ाई ठप. आलू-प्लाज के गोदाम बने हैं कमरे. यह नजारा हर रोज हजारीबाग के दीपूगढ़ा में संचालित आदिम जनजाति प्राथमिक विद्यालय में दिख रहा है. दीपूगढ़ा स्थित उक्त विद्यालय की कक्षाओं आलू-प्याज रखे जा रहे हैं और बरामदे में इसकी पैकिंग कर बिक्री की जा रही है. इतना हीं नहीं आरोप यह भी है कि संचालक ने एक कमरों को कोचिंग संचालन के लिए भी आवंटित कर दिया है. बिरहोर बेटियों के लिए संचालित इस विद्यालय में फिलहाल लगभग 60 छात्राएं पढ़ाई कर रही हैं. पांच शिक्षक पदस्थापित हैं.
लेकिन, यहां की हालत देखकर कोई भी शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए बिना नहीं रह सकता. बच्चों के अध्ययन कक्ष में न सिर्फ आलू-प्याज की बोरियां भरी मिली. बरामदे में चार मजदूर आलू-प्याज पैक करते मिले. बताया जाता है कि किसी व्यापारी को इस कार्य के लिए विद्यालय दे दिया है. वहीं एक अन्य कमरे में निजी कोचिंग सेंटर चल रहा है. ज्ञात हो कि विद्यालय के संचालन के लिए एक सामाजिक संस्था को जिम्मा दिया गया है. पिछले 15 सालों से यहां विद्यालय का संचालन किया जा रहा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिन कमरों में बिरहोर बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं और वहां गोदाम संचालित हो रहा है. इसका मतलब सीधा है कि विद्यालय में नाम की कक्षाएं है और विद्यार्थी गोदाम व कोचिंग सेंटर संचालन सीखने को शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. कागज पर हाजिरी बन रही है और कागज पर हीं बच्चे भोजन भी कर रहे हैं. विद्यालय का संचालन कल्याण विभाग के द्वारा किया जाता है. इसके संचालन में आने वाली राशि का वहन भी इसी विभाग द्वारा किया जाता है. केंद्र और राज्य सरकारें करोड़ों-अरबों रुपये खर्च कर लुप्त प्राय हो चुकी आदिम जनजाति परिवार के लोगों को संरक्षित, शिक्षित और स्वावलंबी बना रही है. इसी उद्देश्य से हजारीबाग के दीपूगढ़ा में भी आदिम जनजाति प्राथमिक विद्यालय खोला गया था लेकिन यहां सिर्फखानापूर्ति हो रही है. संचालक कल्याण विभाग की आड़ में बचता रहा है.
किसी भी कमरे को भाड़ा पर नहीं दिया गया है, बारिश के कारण एक किसान को तत्काल सामान रखने के दिया गया था. आलू-प्याज रखे हैं, जल्द ही खाली कर दिया जाएगा. सुबोध कुमार, संचालक, आदिम जनजाति बालिका आवासीय विद्यालय, दीपूग दा फिलहाल मामले की जानकारी नहीं है. जानकारी लेने के बाद कार्रवाई की जाएगी.
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