न्यूज़ 11भारत
रांची /डेस्क: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करते हुए कहा कि आज एक नया शब्द सुना - कैथोलिक आदिवासी ! कोई इन्हें बताये कि या तो आप कैथोलिक हो सकते हैं या फिर आदिवासी. दोनों एक साथ होना संभव ही नहीं है, क्योंकि संविधान के हिसाब से आदिवासी अनुसूचित जनजाति में आते हैं, जबकि ईसाई अल्पसंख्यक में. नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि ईसाई धर्म में जाति व्यवस्था नहीं होती इसलिए धर्म परिवर्तन के साथ ही आप दलित/ आदिवासी होने की पहचान खो देते हैं.
आदिवासियों की पहचान उनकी विशिष्ट संस्कृति, परंपराओं, भाषा, और जीवनशैली में निहित है. हम पेड़ के नीचे बैठ कर पूजा करने वाले लोग हैं. जन्म से लेकर मृत्यु तक, हमारे जीवन के सभी संस्कारों को पाहन, पड़हा राजा, मानकी मुंडा एवं मांझी परगना पूरा करवाते हैं, जबकि धर्म परिवर्तन के बाद वे लोग इसके लिए चर्च में जाते हैं. वहाँ मरांग बुरु या सिंग बोंगा की पूजा होती है क्या?
जिस किसी ने भी धर्म परिवर्तन कर लिया अथवा आदिवासी जीवनशैली का त्याग कर दिया, उनसे हमें कोई दिक्कत नहीं है. आप जहाँ हैं, आराम से रहिए, लेकिन हम यह सुनिश्चित करेंगे कि भारतीय संविधान द्वारा आदिवासी समाज को दिए गए आरक्षण के अधिकार में आप अतिक्रमण ना कर सकें. जागो आदिवासियों, जागो !