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रांची/डेस्क: बोकारो जिले के तेतुलिया मौजा की 100 एकड़ भूमि की अवैध खरीद-बिक्री के मामले में जेल में बंद व्यवसायी पुनीत अग्रवाल को रांची की विशेष सीआईडी अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया है. सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि पुनीत अग्रवाल की भूमिका संदेह से परे नहीं है.
कोर्ट में सामने आए प्रमुख तथ्य
पुनीत अग्रवाल ने यह दावा किया कि वह सिर्फ एक निर्देश निवेशक हैं, जिन्होंने ज़मीन को डेवलप करने के लिए उमायुष मल्टीकॉम के साथ एकरारनामा किया था और 3.40 करोड़ रुपये का भुगतान किया था. लेकिन जांच में सामने आया कि उमायुष के प्रतिनिधि ललन सिंह से उन्होंने कभी मुलाकात नहीं की, न ही उन्हें कभी देखा. इसके बावजूद इतना बड़ा सौदा किया गया. रजिस्ट्री प्रक्रिया और पूरे लेन-देन का संचालन शैलेष सिंह के माध्यम से किया गया, जिन्होंने उमायुष के नाम पर जमीन की रजिस्ट्री करवाई.
अदालत का निष्कर्ष
अदालत ने कहा कि यह मानना कठिन है कि पुनीत अग्रवाल केवल एक निर्दोष निवेशक हैं. राजबीर कंस्ट्रक्शन ने जिस कंपनी के साथ डील की (उमायुष मल्टीकॉम), वह सिर्फ एक लाख रुपये की पेड-अप कैपिटल वाली कंपनी थी, और अग्रवाल ने 3.40 करोड़ रुपये का भुगतान 18 महीने पहले ही कर दिया था, जबकि एकरारनामा बाद में हुआ. पैसे से रजिस्ट्री फीस का भुगतान हुआ, जिससे साफ है कि सौदे में अग्रवाल की संलिप्तता महज निवेश तक सीमित नहीं थी. प्रवर्तन निदेशालय (ED) की छापेमारी के बाद जब जमीन के विवाद की बात सामने आई, तब जाकर राजबीर कंस्ट्रक्शन ने उमायुष से किया गया समझौता रद्द कर दिया और 12% ब्याज सहित राशि वसूली के लिए मुकदमा दायर किया.
सीआईडी की दलील
सीआईडी ने अदालत में कहा कि पुनीत अग्रवाल व अन्य ने वन विभाग की भूमि को अवैध रूप से खरीदने-बेचने की साजिश रची थी, और अब जांच से बचने के लिए खुद को सिर्फ निवेशक बता रहे हैं. सभी पक्षों की दलीलों और दस्तावेजों की समीक्षा के बाद, अदालत ने यह मानने से इनकार कर दिया कि पुनीत अग्रवाल पूरी तरह निर्दोष हैं, और उन्हें जमानत देने से मना कर दिया.