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सुमित कुमार पाठक/न्यूज 11 भारत
पतरातु/डेस्क: ब्रह्माकुमारीज पतरातू सेवा केंद्र में शनिवार को जन्माष्टमी उत्सव मनाया गया. इसमेंश्रीकृष्ण के रूप में गोलू कुमार और श्री राधा के रूप में रिया कुमारी और बलराम के रूप में शिवम् कुमार उपस्थित थे.
केन्द्र संचालिका ब्रह्माकुमारी रोशनी बहन ने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का संदेश यह है कि भारत देश में मनाये जाने वाले पर्व और जयन्ति मनुष्य को उसकी विवेचना करने, उनकी महानताओं को आत्मसात करने तथा स्मृतियों को ताजा करने का होता है. वैसे जन्म तो हर एक मनुष्य के मनाये जाते हैं परन्तु कुछ महापुरुष अथवा देवपुरुष ऐसे हैं जिससे लोगों को अलौकिक एवं आध्यात्मिक शक्ति तथा महान कर्म करने की प्रेरणा मिलती है. यही कारण है कि विज्ञान के युग में भी इसकी महत्ता दिनों-दिन बढ़ती जाती है. ऐसे भी आज के युग में श्रीकृष्ण की जयंति मना लेना ही पर्याप्त नहीं बल्कि उनके द्वारा किये महान कर्मों के बारे में गहराई से चिंतन करने की आवश्यकता है. उनका जन्म एक ऐसे वक्त पर हुआ जब संसार में अधर्म, पापाचार, अत्याचार, पारिवारिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न होना, आसुरी वृत्ति का बोलबाला, सत्यता लुप्त होकर झूठ का साम्राज्य था.
आगे ब्रह्माकुमारी ने कहा श्रीकृष्ण एक ऐतिहासिक महापुरूष थे इसका स्पष्ट प्रमाण छान्दोग्य उपनिषद में मिलता है. छान्दोग्य उपनिषद के (3.17.6) अध्याय में कहा गया है कि देवकी पुत्र श्रीकृष्ण को महर्षि आंगिरस ने निष्काम कर्म रूप उपासना की शिक्षा दी थी, जिसे ग्रहण कर श्रीकृष्ण तृप्त अर्थात् सम्पूर्ण पुरुष हो गए थे अर्थात् वे ईश्वर के तुल्य महान कर्म करने वाले बन गये थे.
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा था कि जिनको तुम अपना समझ रहे हो और जिन्हें सगे-सम्बन्धी कह रहे हो, ये सब केवल शारीरिक रूप में हैं. ये तो पहले से ही मरे हुए हैं. आत्मा कभी मरती नहीं और संसार में जितने भी लोग हैं वे सभी आत्मायें है, शरीर नहीं. वास्तव में, अर्जुन अर्थात् ज्ञान का अर्जन करने वाला. इसलिए आज प्रत्येक मनुष्य को अर्जुन बनने की आवश्यकता है. श्रीकृष्ण ने प्रत्येक मनुष्य के मनःस्थिति की अवस्थाओं का रूप बताया है. महाभारत प्रत्येक घर की कहानी बतायी है. जिसका बिगड़ता रूप प्रत्येक घर में दिखायी दे रहा है. आज प्रत्येक घर में भाई-भतीजावाद इतनी है कि लालचवश एक-दूसरे का खून, व्यभिचार और अत्याचार की सीमा मानवीय संवेदनाओं को कर दिया है. महाभारत काल में तो केवल एक द्रोपदी का चीर हरण हुआ था परन्तु आज तो लाखों द्रोपदियों का चीर हरण हो रहा है. वास्तव में यह कौन कर रहा है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इसके बारे में भी हमें सोचना चाहिए. .