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सिमडेगा: जंगल में लकड़ी की तस्करी से जुड़ा किरदार पुष्पा सिर्फ फिल्म के पर्दे पर हीं राज नहीं करता है। बल्कि सिमडेगा के जंगलों में भी अनेकों पुष्पा घुस कर जंगल साफ करते हुए पुष्पाराज चला रहे हैं।
लकड़ी तस्करी से जुडी फिल्म पुष्पा का एक डायलॉग 'पुष्पा ! किसी से डरता नहीं' यह डायलॉग फिल्म के साथ साथ सिमडेगा के जंगलों में भी चरितार्थ होता नजर आ रहा है। वन विभाग बार बार छापामारी के लकडियां जब्त कर रही है और वन विभाग के इस कार्रवाई के परे यहां के जंगलों में घुसे पुष्पा बेखौफ पेडों की अवैध कटाई में लगे हुए हैं। सिमडेगा के वन क्षेत्र हो या रैयती वन क्षेत्र हो पुष्पा बने इन लकड़ी तस्करों के साफ्ट टारगेट बस सिमडेगा के वन क्षेत्र बने हुए हैं। दरअसल सिमडेगा के पाकरटांड थाना क्षेत्र से लगता जलडेगा, बानो, बोलबा का क्षेत्र इन तस्करों के लिए सुलभ तस्करी का काम करने लगा है। तस्कर जंगलों से बड़े बड़े शाल वृक्षों को मशीन कटर के सहारे चंद पलों में धराशायी कर देते हैं इसके बाद इसके बोटे तैयार कर इसे छिपा कर रख देते हैं। मौका देख कटे हुए शाल के इन बोटों को छतीसगढ, बिहार, बंगाल आदि तक पंहुचा देते हैं। हर खेप में ये तस्कर 30-40 शाल बोटा की खेप तैयार कर तस्करी करते हुए पंहुचा रहे हैं।
शुक्रवार को वन विभाग ने अवैध लकड़ी तस्करी के विरुद्ध वन विभाग ने बड़ी करवाई करते हुए बानो के गट्टी बादू जंगल से तस्करी के लिए काट कर रखे गए शाल पेड़ के 50 बोटा लदा हुआ ट्रक किया जब्त। इससे पहले वन विभाग ने कोलेबिरा से भी तस्करी के लिए जा रही शाल लकड़ी के 40 बोटा जब्त किए थे। उसके पहले बुधवार को भी ठेठईटांगर के वन क्षेत्र से तस्करी के लिए काट कर रखे गए शाल पेड़ के 27 बोटा वन विभाग ने जब्त किए थे। जबकि उसके एक दिन पहले मंगलवार को 3 डंफर अवैध रूप से रखी जलावन की लकड़ी एक सरकारी स्कूल के भवन से वन विभाग ने जब्त किए थे। महज चार दिनों में अवैध रूप से काटे 117 बोटा शाल लकड़ी और 03 डंफर अवैध जलावन की लकड़ी का मिलना साफ साफ बता रहा है कि सिमडेगा में किस कदर पुष्पा राज चल रहा है।

जंगलों पहाडों से अच्छादित सिमडेगा को पैसे के भूखे तस्कर रसातल में पंहुचाने में लग गए है। लगातार जिले के जंगलों से लकड़ी काटने और पकड़ने की सूचना सुर्खियां बन रही है। सिमडेगा के वन क्षेत्र में एक बार फिर लकड़ी तस्कर सक्रिय नजर आ रहे हैं। जानकारी के मुताबिक अवैध कारोबारी दिनदहाड़े पेड़ों को काटकर वहीं पर छोड़ देते इसके बाद रात के दूसरे पहर में इसका परिवहन किया जाता है। एक तरफ शासन प्रशासन पर्यावरण सरंक्षण करने के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च कर हरियाली महोत्सव मनाता है। लाखों पौधे लगाने के संकल्प लिए जाते हैं। वहीं दूसरी ओर क्षेत्र में जंगलो से बड़े बड़े हरे भरे वृक्ष धड़ल्ले से काटे जा रहे हैं।पौधे सालों बाद विकसित होकर पेड़ का रूप लेते हैं। जिससे पर्यावरण के साथ लोगों को ही कई फायदे मिलते हैं। लेकिन थोड़े रुपयों के लालच में उसे काटा जा रहा है। जिस पर रोक नहीं लग रही।
विदित हो कि वर्ष 2022 में सिमडेगा के बानो प्रखण्ड से लगे मनोहरपुर में मनोहरपुर पुलिस ने जंगलों को अवैध रूप से जंगल काट कर, एक अवैध गांव बसने का खुलासा किया था। कहीं सिमडेगा में भी ऐसा तो नहीं हो रहा है कि जंगल काट गांव बसाए जा रहे हैं। ये गंभीरता पूर्वक जांच करने का विषय है क्योकि सिमडेगा जिला से सटे मनोहरपुर क्षेत्र में इस तरह के अवैध गांव उजागर हुए हैं, जो अवैध रूप से जंगल काट बसाए गए हैं। और ऐसे हीं अवैध गांव उग्रवाद का जन्मस्थान भी बन सकता है।
वन विभाग द्वारा लगातार जब्त की जा रही लकड़ियों को देख यही लगता है कि सिमडेगा में पुष्पाराज कायम हो गया है। वन विभाग जिस तेजी से कार्रवाई कर लकड़ी जब्त कर रहा। लकड़ी तस्कर उसी तेजी से फिर पेड़ों को धराशाई करने लगते हैं। सिमडेगा में कायम पुष्पाराज के खिलाफ कोलेबिरा विधायक नमन बिक्सल कोंगाड़ी ने कहा कि वन विभाग की लापरवाही से सिमडेगा में धडल्ले से कट रहे हैं जंगल। उन्होने कहा सिमडेगा के जंगलों से लगातार तस्करी के लकड़ी बरामद हो रहे जो सिमडेगा वन विभाग की नाकामी को दर्शा रहे हैं। विधायक ने कहा लकड़ी कटाई के नाम पर वर्ष 2022 के जनवरी में सिमडेगा के बेसराजारा में माॅब लिंचिंग जैसी खौफनाक घटना तक घटी थी। लेकिन इसके बाद भी वन विभाग अपने कर्तव्य के प्रति सचेत नहीं हुआ। लगातार पेड कट रहे हैं और वन विभाग महज खानापूर्ति कर रहा है। उन्होने कहा वे कई बार विधानसभा में भी लकड़ी कटने की बात उठाए थे। लेकिन वन विभाग हमेशा से सरकार को गुमराह कर रहा है।
खैर पुरानी बातो को छोड़ कर सिमडेगा में अभी कायम पुष्पराज पर अंकुश कैसे लगे इसपर गहन विचार और जमीनी करवाई की जरूरत है। क्योंकि आदिवासी संस्कृति से जुड़े जंगल जो यहां अपने वनोपज से लोगों का रोजगार भी बनते हैं। इसे बचाना सबकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। क्योकि जंगल से हीं सिमडेगा की संस्कृति भी जुड़ी है।