प्रशांत/न्यूज़11 भारत
चतरा/डेस्क: लावालौंग प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र इन दिनों अखबारों और टीवी चैनलों की खूब सुर्खियां बटोर रही है. इसकी वजह है, लावालौंग में विगत 15 वर्षों से कार्यरत एएनएम कुसुमलता की कार्यशैली. एएनएम कुसुमलता अब अपनी सारी हदें पार कर चुकी है. एक आदिम जनजाति (परहिया) परिवार भी इसके लूट खसोट की रवैये से बच नहीं पाया.
मामले की जानकारी देते हुए भलवाही चांदी गांव निवासी राजकुमार परिया ने बताया कि तीन सप्ताह पूर्व हम अपनी बहन का प्रसव कराने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लावालौंग आए थे. यहां एएनएम कुसुमलता के द्वारा प्रसव कराया गया. इसके बाद उसने हम लोगों से दो हजार रूपए की मांग करते हुए कहने लगी की पैसा जमा करोगे तभी बच्चे को यहां से जाने दिया जाएगा. इसके बाद हम लोगों ने सरकार के द्वारा दिया गया राशन का चावल को बेचकर इस भरी बरसात में एक हजार रूपए की जुगाड़ की. इसपर भी कुसुमलता के साथ कई बार बिनती करनी पड़ी. फिर उसने हमें जाने दिया. इसके बाद हाल में ही कुसुमलता से जन्म प्रमाण पत्र लेने पहुंचा और प्रमाण पत्र की मांग की तो कुसुमलता ने झुंझलाते हुए कहा कि एक महीना होने चला है और पैसा देने के लिए कभी सपना भी नही देखा. एक हजार बाकी था वो और छह सौ रूपए प्रमाण पत्र का जमा करो तब प्रमाण पत्र मिलेगा. हमलोगों को प्रमाण पत्र बनवाने में ऊपर पैसा देना पड़ता है. इसके बाद हमने घर के लिए जरूरी सामान लेने के लिए जेब में पड़े तीन सौ रूपए एएनएम कुसुमलता को दे दिए. शेष बारह सौ रूपए बाद में देने की बात कहने पर कुसुमलता ने हमें प्रमाण पत्र दिया.
ज्ञात हो कि एक तरफ जहां राज्य और केंद्र सरकार द्वारा विलुप्त होती परहिया जाति के संरक्षण के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाएं चला रही है. वही जीवन दाता कहे जाने वाले स्वास्थ्य कर्मियों के ऐसी करतूत से मानवता शर्मसार हो गया है. इस बाबत बीडीओ विपिन कुमार भारती ने कहा कि कुसुमलता के द्वारा अवैध वसूली का जानकारी विभिन्न माध्यमों से मुझे मिल रही है. परहिया परिवार से वसूली वाले मामले की जानकारी मुझे नहीं है. अगर एएनएम दोषी पाई जाती है, तो उसपर सख्त कारवाई की जाएगी. इधर कुसुमलता ने कहा कि हमारा काम सिर्फ प्रसव कराना है, किसी तरह का पत्र बनवाना या पैसा मांगना नहीं.