प्रशांत/न्यूज़11 भारत
चतरा/डेस्क: प्रतापपुर प्रखंड क्षेत्र के भूगड़ा गांव के बैगा टोली में एक बार फिर सड़क के अभाव और समय पर इलाज न मिलने से एक गर्भवती महिला की दुखद मौत हो गई. इस हृदय विदारक घटना ने सरकार के आदिवासी हितैषी होने के दावों और स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी हकीकत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. गुरुवार को प्रसव पीड़ा से जूझ रही बैगा आदिवासी महिला गुड़िया देवी ने अपना दम तोड़ दिया. मृतका के पति राजेश बैगा ने एक तथाकथित प्राइवेट क्लीनिक से दवा लाकर दी थी, जिसे खाने के बाद गुड़िया की तबीयत बिगड़ गई. तबीयत बिगड़ने पर प्रतापपुर स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा प्रभारी डॉ. संजीव कुमार को इसकी सूचना दी. जिसके बाद एंबुलेंस तो भेजी गई, लेकिन गांव तक सड़क न होने के कारण एंबुलेंस गुड़िया देवी के घर तक नही पहुंच पाई. एंबुलेंस आईटीआई कॉलेज के पास ही 500 मीटर की दूर रुक गई.
परिजनों ने खाट के सहारे गुड़िया को एंबुलेंस तक लाने का प्रयास किया, लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई. चिकित्सा प्रभारी डॉ. संजीव कुमार ने बताया कि उन्हें सूचना मिली थी कि गुड़िया देवी की तबीयत बिगड़ी है, जिसके बाद एंबुलेंस भेजी गई थी. लेकिन बाद में परिजनों ने उसे मृत बताकर एंबुलेंस को वापस जाने को कहा. उन्होंने यह भी बताया कि प्रथम दृष्टया यह मामला संदेहास्पद प्रतीत है और उन्हें स्नेक बाइट से मौत होने का भी संदेह है. मामले में जांच के बाद ही खुलासा हो पाएगा. हालांकि परिजन पोस्टमार्टम करवाने से इंकार कर रहे हैं. परिजनों को कहना है कि अगर पोस्टमार्टम के बाद कोई राशि मिलती है, तो उसको भी बिचौलिया खा जाएंगे. ऐसे में सरकारी दावों पर सवाल उठना लाजमी है. यह घटना ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं की कमी और स्वास्थ्य सेवाओं की लचर स्थिति का जीता- जागता प्रमाण है. हाल ही में प्रतापपुर के हिन्दिया खुर्द गांव में भी सड़क के अभाव में खाट एंबुलेंस पर प्रसव हुआ था. अगर सरकार आदिवासियों के हित की बात करती है, तो इन बेगुनाह आदिम जनजाति की मौत का जिम्मेदार कौन है? बहरहाल महिला की मौत के बाद प्रखंड विकास पदाधिकारी अभिषेक पांडेय, अंचलाधिकारी विकास टुडू व चिकित्सा प्रभारी डॉ. संजीव कुमार पीड़ित परिवार के घर पहुंच उनका हाल चाल जान और उन्हें हर संभव सरकारी मदद दिलाने का आश्वासन दिया.