न्यूज़11 भारत
रांची/डेस्क: कल्पना कीजिए- आप प्यार के नाम पर किसी को अपने लाइफ में जगह देते है लेकिन असल में वह रिश्ता घर की चारदीवारी और किराए के बोझ से बंधा होता हैं. जहां दिल के बजाय मकान की चाबी और बिजली-पानी का बिल रिश्ते की नींव बन जाते हैं. यही है Hobosexuality, एक ऐसा ट्रेंड जो प्यार और सहारे के भ्रम में आर्थिक मजबूरी और शहरी संघर्ष की सच्चाई को उजागर करता हैं. भारत के महानगरों में आसमान छूती प्रॉपर्टी की कीमतें और बढ़ते किराए ने कई लोगों की जिंदगी बदल दी हैं. अकेले रहना या फिर छोटे से फ्लैट से बड़े फ्लैट में जाना जब आसान नहीं रहा. इसी बीच शहरों में एक नया चलन तेजी से उभर रहा है, जिसे कहते है Hobosexuality.
क्या है Hobosexuality?
Hobosexuality उस रिश्ते को कहा जाता है, जिसमें कोई व्यक्ति प्यार का नाम लेकर अपने पार्टनर के घर में रहने लगता है और आर्थिक मदद भी लेता हैं. इसमें इमोशनल और आर्थिक जिम्मेदारी अक्सर एक ही साथी पर आ जाती है जबकि दूसरा सिर्फ रहने और सुविधाओं का लाभ उठाता हैं.
पश्चिम से भारत तक का सफर
यह शब्द सबसे पहले पश्चिमी इंटरनेट कल्चर से निकला था, जहां इसका इस्तेमाल उन लोगों के लिए होता था जो सिर्फ घर पाने के लिए किसी के साथ डेटिंग करते हैं. फिल्मों में भी इसकी झलक देखने को मिली है लेकिन अब यह चलन भारत जैसे देशों में भी तेजी से बढ़ रहा हैं. मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे महंगे शहरों में यह नया रिश्ता अब एक तरह का लेन-देन बनता जा रहा हैं.
Gateway of Healing की निदेशक डॉ. चांदनी तुगनैत बताती है कि कई लोग ऐसे रिश्तों में बंध रहे है, जिनमें उनका साथी न तो इमोशनल योगदान देता है और न ही आर्थिक. इन रिश्तों में असंतुलन साफ झलकता है, जहां एक पक्ष फायदा उठाता है और दूसरा जिम्मेदारी उठाता हैं.
इमोशनल जाल में फंसी कहानी
अंकिता (बदला हुआ नाम) जैसी महिलाएं बताती है कि शुरू में सबकुछ रोमांटिक लगता हैं. लेकिन समय बीतते ही सच्चाई सामने आती हैं. उनका अनुभव रहा कि उनका पार्टनर किराया तो देता नहीं था लेकिन कभी-कभार छोटी-मोटी मदद करके जिम्मेदारी निभाने का दिखावा करता था. इमोशनल सहारा भी ऐसे रिश्तों में अक्सर गायब रहता हैं.
शहर और समाज का आईना
यह ट्रेंड केवल रिश्तों की समस्या नहीं बल्कि हमारे समाज की आर्थिक हकीकत को भी दर्शाता हैं. एक रिपोर्ट से यह पता चला है कि 2025 तक Millennials and Gen-Z का आधे से ज्यादा वर्ग महीने का खर्च निकालने में संघर्ष करेगा. वहीं मुंबई जैसे शहरों में एक व्यक्ति की आय का करीब आधा हिस्सा सिर्फ किराए में चला जाता हैं.
आखिरकार Hobosexuality सिर्फ रिश्तों की निजी कहानी नहीं बल्कि हमारे जनरेशन की सच्चाई हैं. जब छत पाना सबसे बड़ी जंग बन जाए तो रिश्ते भी कहीं न कहीं उसी जंग का हिस्सा बन जाते हैं. सवाल यह है कि क्या प्यार सचमुच दिलों के बीच जुड़ाव रहेगा या फिर वह धीरे-धीरे किराए, बिल और बाकी की सुविधाओं के सौदे में ही क्यों न बदल जाए?