प्रशांत/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: कभी स्वास्थ्य सेवा का प्रतीक रहे अस्पताल अब हजारीबाग में मौत के अड्डे बन चुके हैं. शहर की गलियों में खुले अवैध नर्सिंग होम आज इंसानियत का चीरहरण कर रहे है, बिना डॉक्टर, बिना लाइसेंस और बिना किसी डर के. ये सिर्फ ईलाज नहीं, लाशों का कारोबार चला रहे हैं. और शर्मनाक यह है कि प्रशासन, नेता और स्वास्थ्य विभाग सबके होंठ सीले हुए हैं! क्या ये चुप्पी महज डर है, या इन मौत के दलालों से साँठ-गाँठ ? विष्णुगढ़ से लेकर इंद्रपुरी, केरेडारी रोड, कटकमसांडी, बरही, चौपारण पदमा, इचाक और बड़कागांव तक दर्जनों नर्सिंग होम खुलेआम चिकित्सा माफिया का खेल खेल रहे हैं. यहाँ एमबीबीएस डॉक्टर नहीं, झोला छाप, कंपाउंडर और दलाल ऑपरेशन कर रहे हैं. बच्चा जनने से लेकर गंभीर बीमारी तक, हर इलाज ट्रायल एंड एरर पर आधारित है.
सबसे ज्यादा शिकार बनते हैं गरीब, अनपढ़ ग्रामीण इलाकों से आए लोग जिनके पास न जानकारी है, न पहुंच. इन मौत के कारखानों की जानकारी स्वास्थ्य विभाग को है, फिर भी कार्रवाई क्यों नहीं होती? जवाब साफ है, साठगांठ. छापेमारी से पहले संचालकों को खबर दे दी जाती है, और फिर रसूखदारों के फोन पर फाइलें I दब जाती हैं. दो हफ्ते पहले एक महिला की गलत डिलीवरी में मौत हो गई, पर आज तक कोई गिरफ्तारी नहीं, कोई सीलिंग नहीं सिर्फ दिखावे की जांच और खोखले आश्वासन. सबसे बड़ा सवाल है कि हजारीबाग के सिविल सर्जन क्यों खामोश हैं? क्या उन्हें हजारीबाग की जनता की जान की कोई परवाह नहीं? जब सरकारी सदर अस्पताल में संसाधन और डॉक्टर हैं, तो जनता को इन कसाईखानों के हवाले क्यों छोड़ा गया है? अगर अब भी प्रशासन की नींद नहीं खुली, तो अगली लाश किसी वीआईपी की नहीं, फिर एक आम नागरिक की होगी. और तब हजारीबाग में एंबुलेंस नहीं, इंसाफ की चिताएं दौड़ेंगी. समय है कि सरकार अब आंख खोले, अवैध नर्सिंग होम्स पर बुलडोजर चलाए और मौत के इस खेल को हमेशा के लिए बंद करे, वरना आने वाली पीढ़ियां पूछेंगी कि मरने से पहले तुमने कुछ किया क्यों नहीं?
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