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सिमडेगा/डेस्क: एक पुराने फिल्म का गाना याद आता है कि "हर कदम पर है कोई कातिल कहां जाए कोई" आज सिमडेगा के बानो प्रखंड के जामुड़सोया के बच्चों को खतरे उठाकर स्कूल जाते देख ये गाना बरबस जेहन में आ गया. देखिए किस तरह छोटे छोटे मासूम खतरे उठा कर स्कूल जाते हैं.
भविष्य संवारने के लिए दर्जनों मासूम आज हर दिन खतरे उठा कर स्कूल जा रहे हैं . उफान पर है बानो का सीदिर नाला, उफनते नाले को हर दिन से खतरे उठाकर दर्जनों बच्चे स्कूल जाते हैं . यह दृश्य किसी फिल्म का नहीं बल्कि सिमडेगा के बानो प्रखंड के जामुड़सोया कुसुम दोन गांव का है. यह नाला इन स्कूली बच्चों के लिए मौत के खतरे का नाला बन गया है. दरअसल, सिमडेगा के बानो प्रखंड के बिन्तुक्का पंचायत अंतर्गत जामुड़सोया कुसुम दोन गांव के लोग वर्षों से एक बुनियादी सुविध पुल के लिए तरस रहे हैं. यहां का सीदिर नाला, जो सामान्य दिनों में भी पार करना चुनौतीपूर्ण होता है, बारिश के मौसम में जानलेवा बन जाता है. नाले के तेज बहाव के कारण गांव पूरी तरह टापू बन जाता है. इस दौरान बच्चों की शिक्षा पर संकट के बादल छा जाते हैं. इस उफनते नाले को पार कर रोज़ स्कूल जाना बच्चों के लिए किसी साहसिक मिशन से कम नहीं. बारिश के समय स्कूल जाना तो नामुमकिन हो जाता है. कई शिक्षक अपनी जान जोखिम में डालकर बच्चों को गोद में उठाकर नाला पार करवाते हैं. यही नहीं यह नाला इस गांव के स्वास्थ्य सेवाओं पर भी काफी बुरा असर डाल रहा है. गांव में यदि कोई बीमार पड़ जाए तो उसे अस्पताल ले जाना किसी चुनौती से कम नहीं होती है. कई बार मरीजों को चारपाई या बांस की मदद से किसी तरह नाले के पार लाया जाता है. कई ग्रामीणों ने बताया कि समय पर इलाज न मिल पाने के कारण कई लोगों की जान भी जा चुकी हैं. ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने विधायक, सांसद से लेकर उपायुक्त कार्यालय तक कई बार आवेदन दिए हैं. लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिलता रहा है. आज तक नाले पर पुल नहीं बना। कई बार सर्वेक्षण की टीम आई लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी.
ग्रामीणों ने बताया कि करीब एक दशक पहले इसी नाले को पार करने के दौरान गांव के पांच लोगों की डूबने से मौत हो गई थी. इसके बावजूद प्रशासन की उदासीनता चिंता का विषय है. इस गांव के प्रति सरकार और सरकारी तंत्र के उदासीन रवैए पर अब ग्रामीणों का गुस्सा फूटने लगा है. स्थानीय निवासी किरीम लुगुन ने कहा कि हमें पुल की मांग करने के लिए किसी बड़े हादसे का इंतजार करना होगा क्या? उन्होंने कहा कि अगर नेता और अफसरों के घरों के पास ऐसा कोई नाला होता तो अब तक पुल बन चुका होता. गांव के लोगों ने अब पंचायत स्तर से लेकर ज़िला मुख्यालय तक सामूहिक आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी है. ग्रामीण चाहते हैं कि यह मुद्दा केवल कागजों तक सीमित न रह जाए, बल्कि ज़मीन पर काम दिखे.
स्कूली बच्चों ने भी अपनी परेशानी बताते हुए पुल निर्माण की मांग की है. गांव के हालत पर सरकार और सरकारी तंत्र के उदासीन रवैए ने कई यक्ष प्रश्न खड़े कर दिए हैं क्या शासन-प्रशासन जामुड़सोया के लोगों की आवाज़ सुनेगा? क्या बच्चों की शिक्षा और ग्रामीणों की ज़िंदगी इतनी सस्ती है कि एक पुल तक न बन सके? और कब तक यह गांव विकास की मुख्यधारा से कटा रहेगा? ग्रामीणों की मांग हैं कि जल्द से जल्द स्थायी पुल का निर्माण हो, ताकि अगली पीढ़ी को इस दर्द से न गुजरना पड़े.
अब कब इस गांव की तरफ सरकार की नज़रे इनायत होगी. ये तो आने वाला वक्त बताएगा. लेकिन अंतिम पायदान पर खड़े इस गांव में विकास नहीं पहुंचीं तो आने वाले समय में इस गांव में फिर से कोई बड़ी घटना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
गांव वालों की इस तकलीफ को देख कवि दुष्यंत की लिखी कविता की पंक्तियां याद आ रही है कि "हो गई है पीर पर्वत-सी अब पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए. सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत ए हाल बदलनी चाहिए."