संतोष श्रींवास्तव
पलामू/डेस्कः- डीआईजी नौशाद आलम ने कहा कि मैं एक पुलिस अधिकारी हूं. सख्ती, अनुशासन और कर्तव्य मेरी वर्दी का हिस्सा है. लेकिन जब किसी ऐसे व्यक्ति से जुड़ने का सौभाग्य मिले, जिनका जीवन ही संघर्ष और सेवा की मिसाल हो, तो वर्दी के नीचे का दिल भी बहुत कुछ सीख जाता है.
मैं जब रांची में पदस्थ था, तब मुझे दिशोम गुरु शिबू सोरेन जी के निकट से जानने, सुनने और उनके विचारों को आत्मसात करने का मौका मिला. शुरू में यह एक सामान्य औपचारिक संपर्क था, लेकिन समय के साथ वो एक रिश्ता बन गया— एक ऐसा रिश्ता जिसमें एक बुजुर्ग की सीख थी, एक मार्गदर्शक की दृष्टि थी, और एक योद्धा की आग भी. शिबू जी केवल एक नेता नहीं थे. वो मेरी आत्मा को छू जाने वाले विचार थे. उनके शब्दों में इतना ताप था कि हर मुलाकात के बाद मैं खुद को नया पाता. वो हमेशा कहते थे,
'नौशाद, झारखंड तभी आगे बढ़ेगा जब हम उसके सबसे कमजोर को आगे बढ़ाएं. जब अधिकारी जनता की आवाज़ से जुड़ेगा, तभी व्यवस्था जिंदा कहलाएगी.'
मैंने उनसे सीखा कि एक अधिकारी का धर्म क्या है. ये सिर्फ कागजों पर आदेश देना नहीं है- ये है पीड़ित की आंखों में झांककर उसकी पीड़ा को समझना. और फिर उस पीड़ा से लड़ना.
आज जब मैं किसी गरीब को देखता हूं, किसी आदिवासी भाई को संघर्ष करते देखता हूं, किसी जरूरतमंद की मदद करता हूं- मैं भीतर से महसूस करता हूं कि ये सब मुझे शिबू जी ने सिखाया है. उनकी बातें मेरे जीवन का मंत्र बन चुकी हैं.
उन्होंने मुझसे कहा था-
'शिक्षा सबसे बड़ा अस्त्र है, इसे पकड़ो. और नकारात्मकता से जितनी दूरी रख सकते हो, रखो. क्योंकि झारखंड की तरक्की की राह सकारात्मक सोच से ही निकलेगी.'
आज जब वो हमारे बीच नहीं हैं, तो दिल भारी हो उठता है. लेकिन उनका दिया हुआ हर शब्द, हर निर्देश, आज भी मेरे भीतर जलता हुआ दीपक है. उन्होंने मेरे सोचने का तरीका ही नहीं, जीने का मकसद भी बदल दिया.
आप नहीं रहे दिशोम गुरु, लेकिन मैं वादा करता हूं-
आपका हर विचार, हर मार्गदर्शन मेरी हर भूमिका में जीवित रहेगा.
मैं जहाँ भी जाऊं, आपकी बातें मेरे साथ होंगी.
और मैं लोगों को यही सिखाऊंगा
'अपना नहीं, समाज का विकास सोचो.
विकास तब ही पूरा होता है, जब आखिरी व्यक्ति मुस्कुराए.'
शत-शत नमन आपको.
आपने जो मुझे दिया - वो अमानत है.
उसे मैं पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ निभाऊंगा.
आप थे, आप हैं, और आप हमेशा रहेंगे: मेरे जीवन की प्रेरणा बनकर.