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रांची/डेस्क: 11 अगस्त को विपक्षी पार्टियों का हंगामा, 12 और 13 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में SIR को लेकर बड़ी सुनवाई, जिसमें चुनाव आयोग की प्रक्रिया लगे प्रश्न चिह्न पर SC से राहत, मगर 14 अगस्त को लगता है सारा दांव ही अब उल्टा पड़ने वाला है, लेकिन किसका? चुनाव आयोग का या फिर शोर मचाने वाली विपक्षी पार्टियों का? दरअसल, बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण प्रकिया को सुप्रीम कोर्ट ने अब तक जायज ठहराया है, लेकिन अब कोर्ट ने आदेश दिया है कि आयोग बिहार में हटाये गये मतदाताताओं की सूची सार्वजनिक करे. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश चुनाव आयोग और विपक्षी पार्टियों दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि जब से बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण कार्य चल रहा है, विपक्षी पार्टियां, खास कर कांग्रेस, ज्यादा शोर मचा रही हैं. विपक्षी पार्टियों के लगातार आरोपों से चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठने लगे हैं. अब जब चुनाव आयोग इस सूची को जारी कर देगा और उसमें कोई गड़बड़ी नहीं मिली तो फिर विपक्ष के हाथों से एक बड़ा मुद्दा हाथ से निकल जायेगा, जो कि बिहार के विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा झटका होगा. बता दें कि बिहार में चुनाव से पहले कांग्रेस चुनाव आयोग के कथित पक्षपात को लेकर बड़ा आन्दोलन करने की तैयारी कर रही है. यहां यह भी बताना जरूरी है कि चुनाव आयोग ने 1 अगस्त को बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण के बाद उसका डाटा अपनी वेबसाइट पर डाल दिया है ताकि उसको लेकर अगर कोई आपत्ति हो तो दर्ज करायी जा सकती है. मगर आपको हैरत होगा कि इतने दिन बीत जाने के बाद भी चुनाव आयोग के पास किसी भी पार्टी की ओर से कोई आपत्ति नहीं आयी है.
तीसरे दिन की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने दिया कौन-सा आदेश?
बिहार के मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर गुरुवार को तीसरे दिन भी सुनवाई हुई. आज की सुनवाई में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने चुनाव आयोग से सवाल पूछे. मृतकों, पलायन करने वालों, दूसरे राज्यों में बस जाने वालों के नाम का वह खुलासा क्यों नहीं कर रहा है. चुनाव आयोग के इस जवाब पर कि राजनीतिक पार्टियों को हटाये गये नाम की जानकारी दी गयी है. इस पर कोर्ट ने आयोग को हटाये गये 65 लाख मतदाताओं के नाम सार्वजनिक करने का आदेश दिया है. इसके साथ अपनी पारदर्शिता सिद्ध करने के लिए चुनाव आयोग को 3 दिन का समय दिया.
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