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मसलिया के दो आदिवासी अनाथ बच्चे भीख मांग कर गुजारा करने पर मजबूर

मसलिया के दो आदिवासी अनाथ बच्चे भीख मांग कर गुजारा करने पर मजबूर
केसरीनाथ यादव/न्यूज11भारत


मसलिया/डेस्कः- मसलिया प्रखंड क्षेत्र के रांगा पंचायत के झिलुवा गांव के एक चार साल की बच्ची व एक दस साल का अनाथ बच्चा भीख मांग कर गुजर बसर करने पर विवश हैं. दोनों रिश्ते में भाई बहन हैं लेकिन दोनों का परिवार अलग अलग है. वर्तमान समय में दोनों के माता पिता दादा दादी नाना नानी सभी स्वर्ग सिधार चुके हैं. पूछने पर चार वर्षीया सोनाली मुर्मू को मां पिता का भी नाम मालूम नहीं है. पड़ोसियों ने बताया कि उनके पिता बाबूसल मुर्मू का डायरिया के कारण दो साल पूर्व 2023के दिसंबर महीने को देहांत हो गया . जिसके बाद मां ने जन्म देकर वह दूसरे किसी के साथ चली गयी. दादी मंगली सोरेन ने किसी तरह उस बच्ची को बड़ा की लेकिन उनका भी देहांत 2024 को जुलाई में चल बसी. इधर उस बच्ची के रिश्ते में दस वर्षीय गणेश हेम्ब्रम जो फुफेरा भाई है,दोनों किसी तरह भीख मांग कर दो साल से रह रहा है. गणेश का पिता बाबूराम हेम्ब्रम प्लासी गांव का रहने वाला था. उनके मौत के बाद गणेश की मां फुलीन मुर्मू उसे लेकर अपने माईका झिलुवा आ गयी . लेकिन जब प्लासी में भी मां मंगली सोरेन का निधन हो गया तो वह दोनों छोटे छोटे बच्चों को छोड़कर हतियापाथर पंचायत के रामपुर गांव अपने बेटे गणेश को यह कहकर चली गई कि वह काम करने बंगाल जा रही है. दोनों भाई बहन घर में रहे. बाद में पता चला कि रामपुर गांव के काली सिंह बास्की के साथ विवाह कर रह रही है. गांव के एक व्यक्ति जो फुलीन मुर्मू के रिश्ते में नाना लगते हैं उन्हीने बताया कि फोन पर उसने कहा कि अब वह बच्चों के पास नही आने वाली क्योकि उन्हीने नई शादी कर ली है. तब से दोनों भाई बहन भीख मांगकर कर गुजारा कर रहे हैं. कभी शादी घर कभी स्कूल तो कभी आंगनबाड़ी में जाकर खाना खाते हैं. घर में बिजली नहीं है अंधेरे में दोनों भाई बहन का रात कटता है. एक दिन का लाया खाना तीन तीन दिन तक रखकर खाना मजबूरी बन गया है. दस साल के गणेश को खाना बनाना भी आता नही आता है. वह रोज झिलुवा स्कूल इस उम्मीद से जाता है कि एक वक्त का खाना नशीब हो जाये. रविवार को हटिया जाकर भीख मांगता है. वहीं बहन को आंगनबाड़ी भेज देता है जिससे उसे भोजन मिल जाये. एक बार खाने के बाद फिर बारह घंटे इंतजार के बाद दोबारा स्कूल खुले तो भोजन मिल पाता है. बहन भोजन के लिए रोती है तो पड़ोसियों के पास गिड़गिड़ाते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि दोनों बच्चे बहुत ही कष्ट से जी रहे हैं. जिसका देख रेख करने वाला कोई नहीं है. लोगों ने झारखंड सरकार से वात्सल्य योजना का लाभ दिलाने की मांग की है. वहीं इस संदर्भ में प्रखण्ड विकास पदाधिकारी अजफर हसनैन से बात करने पर बताया कि इस पर निश्चित रूप से कोई न कोई व्यवस्था कराया जाएगा लेकिन यह बाल विकास परियोजना पदाधिकारी के क्षेत्राधिकार में आता है उनसे बात कर लें. जब प्राभारी सीडीपीओ रंजन यादव से पूछा गया तो कहा कि जांचोपरांत योजना से लाभान्वित करने का आस्वासन दिया.

 

इसको लेकर क्या कहते हैं जिला बाल कल्याण संरक्षण समिति:

जिला बाल संरक्षण समिति के सदस्य डॉ अमरेंद्र कुमार यादव ने बताया कि झारखंड सरकार के मिशन वात्सल्य योजना के तहत अनाथ बच्चे तथा किसी बच्चों के पिता की मृत्यु हो जाने पर उसे स्पॉन्सरशिप योजना से जुड़े जाने का प्रावधान है एवं ऐसे बच्चों के भरण पोषण एवं पढ़ाई का सारा खर्च सरकार द्वारा उठाया जाता है. ऐसे बच्चों को बाल कल्याण समिति अथवा जिला बाल संरक्षण इकाई के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है.-डॉ अमरेंद्र कुमार यादव

 
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