न्यूज 11 भारत
रांची/डेस्क: एक तरह तो अमेरिका राष्ट्रपति बौद्धिक तौर पर 'अशांत' होने का परिचय दे रहे हैं, और दूसरी ओर वह दुनिया से यह उम्मीद पाले हुए हैं कि वैश्विक नेता उनके पक्ष में शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए समर्थन करें. पाकिस्तान, तुर्की जैसे देश तो ट्रम्प के लिए शांति के नोबेल की वकालत कर रहे हैं, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति की कई मोर्चों पर असफलता खुद उन्हें ही संशय में डाल रही है. हाल के दिनों में ईरान व इजराइल और भारत व पाकिस्तान के बीच कथित शांति समझौता कराने के लिए वह अपनी पीठ तो थपथपा रहे हैं. लेकिन लम्बे समय से रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को रुकवाने का श्रेय हड़पने के लिए भी वह छटपटा रहे हैं, लेकिन सफलता मिल नहीं रही है.
रूस और यूक्रेन युद्ध के संघर्ष विराम के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की ने ट्रम्प से मुलाकात तो जरूर की, लेकिन इन मुलाकातों का अभी तक कोई नतीजा सामने नहीं आया है. लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ, वह ट्रम्प के नींद उड़ाने वाला जरूर साबित हो रहा है. दरअसल, ट्रम्प से मुलाकात करने के बाद न सिर्फ पुतिन ने, बल्कि जेलेंस्की ने भी भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को फोन घुमा दिया. दोनों वैश्विक नेताओं की पीएम मोदी से बात भी हुई और भारतीय पीएम ने दोनों को शांति के रास्ते पर चलने की नसीहत भी दी.
रूस-यूक्रेन युद्ध ही नहीं, ईरान-इजराइल, इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध में अमेरिका भले ही 'दाल-भात में मूसलचंद' बनने की कोशिश करता रहा, लेकिन भारत ने तटस्थ रहने की जो कूटनीति अपनायी वह न सिर्फ काबिले तारीफ है, बल्कि दूसरे देश भी भारत की प्रशंसा कर रहे हैं. अमेरिका की दादागीरी देखिये कि वह भारत और पाकिस्तान के संक्षिप्त संघर्ष के बंद किये जाने का श्रेय अपने पॉकिट में डाल रहा है. आज दुनिया का जिस प्रकार से नया ध्रुवीकरण हो रहा है, अगर उसमें आने वाले दिनों में रूस और यूक्रेन एक विश्वसनीय मध्यस्थ बनकर भारत उभरा है. तब शायद रूस से सिर्फ कच्चा तेल लेने के कारण से नाराज, भारत की इस उपलब्धि को पचा नहीं पायेंगे.
रूस के भारत से क्यों हैं उम्मीदें?
2022 में जब रूस और यूक्रेन में युद्ध शुरू हुआ था तब रूस पर कई प्रतिबंध लगा दिये थे, रूस से कोई देश तेल तक लेना नहीं चाहता था. ऐसे में भारत आगे आया और उससे कच्चा तेल लेना शुरू किया. भारत के लिए यह सस्ते का सौदा था. रूस से सस्ता तेल मिलने के कारण भारत में तेल की कीमते लम्बे समय से स्थिर हैं. रियायती दरों पर रूसी तेल आयात करने से न सिर्फ भारत को अपनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित रखने में मदद मिली, बल्कि रूस की भी आर्थिक स्थिति संतुलित बनी रही. यही बात अमेरिकी राष्ट्रपति को अब चुभ रही है. इसी का ही नतीजा है कि ट्रम्प बार-बार भारत पर टैरिफ बढ़ा रहे है, साथ ही और टैरिफ बढ़ाने की धमकी दे रहे हैं. अलास्का में ट्रम्प से मुलाकात करने के बाद पुतिन का पीएम मोदी को फोन करना इस बात का परिचायक है कि रूस शांति वार्ता में भारत को तरजीह दे रहा है. ऐसा ही यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी किया. उन्होंने भी पीएम मोदी से फोन पर बात की. दोनों देश भारत के शांति प्रयासों की सराहना कर रहे हैं और भारत के नेतृत्व पर भरोसा भी जता रहे हैं. पीएम मोदी ने दोनों देशों को सलाह दी कि 'यह युद्ध का समय नहीं'। अगर भारत के प्रयासों से रूस-यूक्रेन युद्ध विराम हो जाता है तो यह ट्रम्प का दिल तोड़ने वाली घटना तो होगी ही, उनके शांति नोबल पुरस्कार के लिए बड़ा झटका होगा.