न्यूज़11 भारत
रांची/डेस्क: देश में शिक्षकों की स्तिथि पर बड़ी टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर उन्हें सम्मानजनक वेतन भी नहीं मिल पा रहा है तो फिर 'गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरा' गाना ही बेकार है. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि कॉन्ट्रैक्चुअल असिस्टेंट प्रोफेसर को मात्र 30 हजार रुपए की सैलेरी दी जा रही हैं, जबकि ऐड हॉक और रेग्युलर असोसिएट प्रोफेसर का वेतन 1.2 से 1.4 लाख रुपए के बीच हैं.
जस्टिस पीएम नरसिम्हा और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि जो शिक्षक हमारी आने वाली पीढीयों का भविष्य तय करते हैं उन्हें आने वाले समय के लिए तैयार करते हैं, उनके साथ ही इस तरह का व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. बेंच ने कहा कि, किसी भी देश के लिए शिक्षक रीढ़ की हड्डी की तरह होते हैं जो कि हमारे बच्चों को भविष्य की चुनौतियों और अच्छा जीवन जीने के लिए तैयार करते हैं. शिक्षक ही इस समाज में अपनी रिचार्ज, विचारों और मूल्यों के जरिए प्रगति का रास्ता दिखता हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह बड़ी ही चिंता की बात है कि समाज में शिक्षक के अमूल्य योगदान को पहचाना नहीं जा रहा है. कोर्ट ने कहा है कि, अगर शिक्षकों को सम्मानजनक वेतन भी नहीं मिलेगा तो देश में ज्ञान और बौद्धिक सफलता को भी सही स्थान नहीं मिल पायेगा. बता दें कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में संस्कार का निर्देश दिया था कि इस मामले में 'समान कार्य, समान वेतन' के सिद्धांत का पालन किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की है कि असिस्टेंट प्रोफेसर को पिछले दो दशक से इतनी कम सैलरी दी जा रही है. कोर्ट को जानकारी मिली कि कुल 2720 रिक्तियों में से अब तक केवल 923 पोस्ट पर ही स्थायी भर्ती हुई है. शिक्षा कार्य में बाधा आ रही है क्योंकि 158 ऐड हॉक और 902 कॉन्ट्रैक्चुअल असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्तियां हुई हैं, जबकि 737 पोस्ट अब भी खाली हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में पद खाली होने के बावजूद केवल ऐड हॉक और कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर शिक्षकों को रखा जा रहा है.