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रांची/डेस्क: चीन में एक नया और अजीबोगरीब ट्रेंड तेजी से फैल रहा हैं. यहां लोग रोजाना नौ घंटे तक ऑफिस में बैठते है लेकिन उन्हें सैलरी नहीं मिलती, उल्टा उन्हें खुद पैसे देने पड़ते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, यह ट्रेंड 'फेक ऑफिस' के नाम से जाना जा रहा है और इसकी वजह चीन में बढ़ती बेरोजगारी हैं. देश में युवाओं की बेरोजगारी दर 14% से ऊपर है और पढ़े-लिखे युवा असली नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं.
डोंगगुआन शहर के 30 वर्षीय शुई झोउ रोज सुबह 9 बजे से रात 11 बजे तक ऑफिस में डेस्क पर बैठते हैं. चाय पीते है, सहकर्मियों से बातें करते है और कई बार मैनेजर से भी देर तक वहीं रहते हैं. लेकिन असलियत यह है कि झोउ वहां काम करने नहीं बल्कि काम करने का नाटक करने जाते हैं. इसके लिए वे रोजाना कंपनी को करीब 30 युआन (लगभग 420 रूपए) देते हैं.
शुई झोउ का फूड बिजनेस पिछले साल फेल हो गया था और अब वे नकली ऑफिस में बैठकर अपने माता-पिता को फोटो भेजते है ताकि उन्हें लगे कि उनका बेटा नौकरी कर रहा हैं. झोउ कहते है कि यहां सभी मिलकर काम करते है, बातें करते है, गेम्स खेलते है और अक्सर साथ में डिनर भी करते हैं. यह उन्हें पहले से ज्यादा ख़ुशी देता हैं.
शंघाई की 23 वर्षीय शियाओवेन टांग ने बताया कि उनके विश्वविद्यालय ने डिग्री के लिए नौकरी या इंटर्नशिप का प्रमाण मांगा था. उन्होंने एक महीने के लिए 'प्रिंटेड ऑफिस' की सीट किराए पर ली, वहां बैठकर ऑनलाइन उपन्यास लिखे और तस्वीरें यूनिवर्सिटी को भेज दी. इस बिजनेस के पीछे है इसके फाउंडर फेइयू, जिन्होंने कोरोना महामारी के दौरान अपना रिटेल कारोबार खो दिया था. उन्होंने अप्रैल में 'प्रिटेंड टू वर्क कंपनी' शुरू की. फेइयू का कहना है कि मैं डेस्क या वर्कस्टेशन नहीं बेच रहा, बल्कि इंसान को बेकार महसूस न होने की इज़्ज़त बेच रहा हूं.
रिपोर्ट के अनुसार, इस नकली ऑफिस में आने वाले 40% युवा डिग्री के लिए नकली इंटर्नशिप सर्टिफिकेट बनवा रहे हैं. बाकी 60% फ्रीलांसर है, जैसे ऑनलाइन बिजनेस, ई-कॉमर्स या राइटिंग से जुड़े लोग. इनकी औसत उम्र 30 साल है और सबसे कम उम्र 25 साल बताई गई हैं.