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रांची/डेस्कः- अब इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे दंपति की भी गोद भर सकेगी, इसकी संभावना IVG तकनीक से पूरी होने से जताई जा रही है. इसी के तहत एग व स्पर्म विकसित किए जाएंगे. ओसाका यूनिवर्सिटी के प्रो. हायाशी ने दावा किया कि वे इस दिशा में लगातार जुटे हुए हैं और बहुत जल्द ही रिसर्च पूरी कर ली जाएगी. दुनिया में कई देश ऐसे हैं जो प्रजनन क्षमता कम होने से समस्या से जूझ रहे हैं. वैज्ञानिक भी इस समस्या के समाधान में जुडे हुए हैं. बताया जा रहा है कि अगले 7 सालों में यह तकनीक पूरी कर ली जाएगी. इस तकनीक का नाम इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस कहा जा रहा है. हायाशी के अनुसार ये रिसर्च उन करोड़ों कपल्स के लिए उम्मीद की किरण है जो इस समस्या से जूझ रहे हैं.
ऐसे बनेगा स्पर्म
ईएसएचआरई सम्मेलन के एक सम्मेलन में हयाशी ने बताया कि इसके तहत हमें चूहों के स्पर्म को बनाने और मानव अंडकोष विकसित करने में सफलता मिल चुकी है. अब पूरी तरह से IVG पर काम करने की बारी है. किसी व्यक्ति की चिकन व रक्त कोशिकाओं से स्टेम कोशिका बनाई जाती है. फिर इसे जर्म में बदला जाएगा. यही जरम कोशिकाओं से एग व स्पर्म बनाया जाएगा. चुहों में ये प्रयोग सफल हो चुका है.
लगेंगे सात साल
प्रो. हायाशी ने कहा कि लैब में इस स्पर्म को विकसित करने में अभी 7 साल लगेंगे, हालांकि महिलाओं में कोशिका से स्पर्म पैदा करने में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन असंभव नहीं कहा जा सकता है. अन्य विशेषज्ञ भी हायाशी के टाइम टेबल से सहमत हैं. एडिनबर्ग विवि में कैंसर से जूझ रहे पूरूष के प्रजनन क्षमता के संरक्षण के लिए शोध कर रहे प्रोफेशर रॉड मिशेल ने कहा विज्ञान तेजी से आगे बढ़ रहा है. उन्होने कहा कि हमें उम्मीद है कि पांच या दस साल के समय में अंडाशय और अंडकोश में लैब में बने स्पर्म देखा जा सकता है.