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झारखंड » चतरा


झारखंड का प्रागेतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर है कौलेश्वरी पहाड़, पूजा उपासना और पर्यटकों के लिए है दर्शनीय

अद्भुत, विलक्षण, विस्मयंकारी, चमत्कारी, दुर्लभ और दर्शनीय है कौलेश्वरी का पुरातात्विक अवशेष
झारखंड का प्रागेतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर है कौलेश्वरी पहाड़, पूजा उपासना और पर्यटकों के लिए है दर्शनीय
प्रशांत शर्मा/न्यूज11 भारत
चतरा/डेस्क;- हंटरगंज प्रखंड अंतर्गत कौलेश्वरी पहाड़ पर आज भी मौजूद अति प्राचीन ऐतिहासिक पुरातात्विक अवशेष विश्व ख्याति के तीर्थ सह पर्यटन स्थल कौलेश्वरी पहाड़ की सांस्कृतिक धरोहर हैं. यह स्मृति शेष व पुरातात्विक अवशेष अद्भुत, विलक्षण, विस्मयंकारी, चमत्कारी, दुर्लभ और दशनीय के साथ-साथ पुरातत्वविदों के लिए जिज्ञासापूर्ण खोज और विज्ञान के लिए चुनौतीपूर्ण अंवेषण का भी विषय है. ऐसा पुरातत्वविदों का ही अवधारणा या मानना है. कौलेश्वरी पहाड़ धर्मावलंबियो के लिए आस्था विश्वास और पर्यटकों के लिए दुर्लभ दर्शनीय वस्तु बने हुए हैं. कौलेश्वरी पहाड़ पर उपलब्ध एक दर्जन से ऊपर प्रागेऐतिहासिक पुरातात्विक अवशेष व स्मृति शेषो में लगभग 2000 फीट की उच्चाई पर अवस्थित प्राकृतिक सरोवर अपने आप में एक दुर्लभ और अनुपम प्राकृतिक सृजन व उपहार है. 1000 फीट लंबा, 900 फीट चौड़ा और 30 फीट गहरा यह सरोवर सदाबह है. इसका जल औषधीय गुणयुक्त है. त्वचा एवं उदर रोग के लिए यह रामबाण के समान है. लाख गंदगी के बाद भी इसके जल में गंगा जल की तरह कीड़ा नही पड़ता और गंगा जल की तरह ही पवित्र माना जाता है. माता के पसंदीदा श्वेत कमल पुष्प इस प्राकृतिक सरोवर का आभूषण माना जाता है. इसके जलस्रोत का आजतक पता नही चल पाया है. त्वचा व उदर रोग से पीड़ित श्रद्धालु व पर्यटक इस सरोवर का जल साथ ले जाना नहीं भूलते हैं. माता के दर्शन पूजन से पूर्व इस सरोवर में डुबकी लगाने व आचमन करने से भी नहीं चूकते हैं. दूसरा मंडवा-मांडवी का भी सनातन व बौद्ध धर्म ग्रन्थों में अलग-अलग धार्मिक महत्व व आस्था है. सनातन धर्मावलंबी इसे महाभारत कालीन पांडव अर्जुन के पुन अभिमन्यु और राजा विराट की पुत्री उत्तरा का विवाह स्थल का दर्जा देते हैं. वहीं बौद्धिष्ट इसे जीवित अवस्था में मोक्ष प्राप्ति के लिए मान्यता प्राप्त विश्व आठ अंतिम संस्कार स्थलों में एक जिकसो रूमा डुर्थों का दर्जा व मान्यता देते हैं. तीसरा अर्जुनवाण गंगा की मान्यता है कि यह अर्जुन के वाण से अवतरित गर्म जल का सदाबहार कुंड है. इसमें चावल की पोटली डालने से चावल पक जाता है. चौथा आकाश लोचन-भीमवार के बारे में सनातनी मान्यता है कि यह महाभारत कालीन महाबली भीम द्वारा उठाकर फेंका गया एक वजनदार शिलाखंड है, जो चुंबकीय शक्ति के आधार पर एक पतले नुकीले चट्टान पर टिका हुआ है. इसका वजन और गहराई का अनुमान नही लगाया जा सका है. चौथा सप्त ऋषि गुफा के संबंध में सनातन, बौद्ध एवं जैन श्रद्धालुओ धमर्मावलंबियों का अलग-अलग धार्मिक मान्यता व महत्व है. सनातनी इसे सात महान हिन्दू महर्षियों, बौद्धिष्ट सात बौद्ध भिक्षुओं और जैनी इसे सात तीर्थंकरों की तपस्थली की मान्यता देते हैं और अपने-अपने हिसाब से पूजा उपासना करते हैं. चौथा पहाड़ की एक दुर्लभ गुफा में दुर्लभ काले पत्थर की ध्यान मुद्रा की एक प्रतिमा के बारे में सनातन धमावलंबियों का दावा है कि यह बाबा भैरवनाथ और बौद्ध धमर्मावलंबियों का भगवान बुद्ध और जैन धर्मावलंबी इसे भगवान शीतलनाथ की ध्यानस्थ प्रतिमा की मान्यता देते है. पांचवा चट्टानों पर उत्कीर्ण प्रतिमाएं के संबंध में भी सनातन, बौद्ध एवं जैन धमर्मावलंबियों का अपना अलग मान्यता व दावा है. छठा प्राचीन मंदिर में विराजमान माता कौलेश्वरी की दुर्लभ पत्थर की तेजोमयी जीवंत प्रतिमा के विषय में सनातन धर्म शास्त्रों में वर्णित है कि यह इस पहाड़ पर गिरे माता सती की कोख (कुक्ष) भाग से अवतरित महिषासुर मर्दिनी चतुर्भुजी कुंवारी कन्या माता कौलेश्वरी है, जो राजा विराट की कुलदेवी भी है. सातवां बड़े-बड़े शिलाखंडों से निर्मित चौड़ी चारदीवारी राजा विराट की राजधानी के किले का अवशेष है. राजा विराट द्वारा एक सुरंग का भी निर्माण करवाया गया था, जो पहाड़ से शुरू होकर तमासीन जलप्रपात तक जाता था. आज इसका अस्तित्व करीब-करीब विलुप्त हो चुका व दृष्टव्य नही रह गया है. कौलेश्वरी पहाड़ी के शिखर के उत्तरी छोर से प्रवाहित निर्मल शीतल जल का झरना भी विशेष रुप से पर्यटकों के लिए मनोहरी स्थल है. इसके अलावे कई अन्य अति प्राचीन स्मृति शेष है, जो अपने दामन में प्रागेतिहासिक यादें समेटे हुए हैं. इनका वजूद व महत्ता को कायम बनाए रखने के लिए इन प्रागैतिहासिलक स्मृति शेषो का सुरक्षा और संरक्ष्ण का माकूल उपाय सुनिश्चित किया जाना निहायत जरूरी है. ऐसा तीनो धर्मों के घमर्माचार्यों, पुरातत्वविदों का भी मानना है.
 

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