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रांची/डेस्क: मुस्लिम समुदाय के प्रमुख त्योहारों में से एक मुहर्रम इस साल 6 जुलाई यानी आज को मनाया जा रहा हैं. मुहर्रम इस्लामिक हिजरी कैलेंडर का पहला महीना है और इसे इस्लाम के चार पवित्र महीनों में से एक माना जाता है. मुहर्रम का त्योहार बकरीद के 20 दिन बाद मनाया जाता हैं. मुर्हरम का महीना इस बार 27 जून से आरंभ हो गया था और मुहर्रम का दसवां दिन आशुरा होता है. इसी दिन मुहर्रम मनाया जाता है. इस साल 6 जुलाई को मुहर्रम का 10वां दिन आशुरा हैं. आइए आपको बताते हैं कि क्यों मनाते हैं मुहर्रम और इस दिन क्यों निकाले जाते हैं ताजिए..
इमाम हुसैन की शहादत
पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मुस्लिम समुदाय मुहर्रम के महीने में मातम मनाता है. इस महीने का दसवां दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसी दिन कर्बला की लड़ाई में इमाम हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी. इस संघर्ष में उनके साथ 72 साथी भी शहीद हुए थे. कर्बला, जो इराक का एक शहर है, वहीं इमाम हुसैन का मकबरा स्थित है, जो उस स्थान पर बनाया गया है जहां इमाम और यजीद की सेना के बीच युद्ध हुआ था. यह स्थल बगदाद से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. मुहर्रम के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग ताज़िया निकालते हैं. इसे हजरत इमाम हुसैन के मकबरे का प्रतीक माना जाता है और लोग शोक व्यक्त करते हैं. लोग अपनी छाती पीटकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं.
कहा जाता है कि ताजिए कर्बला की लड़ाई में शहीद हुए लोगों का प्रतीक होते हैं. यह जुलूस इमामबाड़ा से शुरू होकर कर्बला में समाप्त होता है, जहां सभी ताजिए दफन किए जाते हैं. इस दिन मातम मनाने के लिए मुस्लिम समुदाय काले कपड़े पहनते हैं. जुलूस के दौरान पूर्वजों की बलिदान की कहानियाँ सुनाई जाती हैं, ताकि नई पीढ़ी इस घटना के महत्व को समझ सके और जीवन के मूल्यों को जान सके.
क्या है आशूरा और महत्व
इस्लाम में यौमे आशुरा का दिन सौहार्द का संदेश दे देता हैं. मुहर्रम के 10 वीं ताराखी को यौमे आशूरा कहा जाता है. मुहर्रम को अन्य इस्लामी रीति-रिवाजों से बहुत अलग माना जाता है, क्योंकि यह शोक का महीना है और इस दौरान कोई उत्सव नहीं मनाया जाता. आशूरा के दिन, इमाम हुसैन की शहादत की याद में, शिया मुसलमान भारत सहित विश्वभर में काले कपड़े पहनकर जुलूस निकालते हैं. और उनके संदेश को फैलाते हैं. कहा जाता है कि हुसैन ने इस्लाम और मानवता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, इसलिए इस दिन को मातम का दिन माना जाता है. इस अवसर पर उनकी शहादत को याद किया जाता है और ताजिया निकाला जाता है.