न्यूज़11 भारत
रांची/डेस्क: नेता प्रतिपक्ष और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करते हुए कहा कि निर्लज्जता की भी एक हद होती है, पर Hemant Soren सरकार ने तो उसे भी पार कर दिया है. झारखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जहाँ बीते दस दिनों से डीजीपी का पद खाली है और जो ‘डीजीपी’ जैसे काम कर भी रहा है, वो बिना वेतन के सेवा दे रहा है! वाह मुख्यमंत्री जी, ये तो नया भारत निर्माण है — ‘बिना वेतन, बिना संवैधानिक वैधता, सिर्फ भ्रष्टाचार के दम पर प्रशासन’!
अब क्यों न एक नई नीति ही बना दी जाए?
धनबाद, हज़ारीबाग़, रामगढ़, बोकारो जैसे कोयला वाले “कमाऊ” इलाक़े समेत और बाकी के खनिज इलाक़ों में भी ‘बिना वेतन, केवल कमीशन आधारित सेवा’ के लिए “रिटायर्ड और अनुभवी” लोगों से आवेदन मंगवाइए. जो काम डीजीपी साहब कर रहे हैं, वही मॉडल लागू कीजिए, जहाँ वेतन की जगह ‘वसूली’ हो और संविधान की जगह ‘किचन कैबिनेट’ के आदेश मान्य हों.
दरअसल, ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकार ने न केवल संविधान के अनुच्छेद 312 को नकारा है, जो UPSC को अधिकार देता है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के प्रकाश सिंह केस के निर्देशों को भी रद्दी की टोकरी में डाल दिया है. हेमंत सोरेन जी अब शायद खुद को सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर मान बैठे हैं और प्रशासन को नीचे, बहुत नीचे गिरा दिया है.
आज झारखंड वहाँ पहुँच चुका है जहाँ JPSC की हर कुर्सी बोली पर बिक रही है और UPSC से चयनित अधिकारियों को भी ‘रेट लिस्ट’ से होकर गुजरना पड़ता है. हेमंत जी, आपने तो एक क्रांतिकारी प्रयोग कर डाला — ‘योग्यता नहीं, सुविधा शुल्क आधारित प्रशासन.’ जो परंपरा आपने शुरू की है, वो न सिर्फ सरकारी व्यवस्था की विश्वसनीयता का अंतिम संस्कार कर रही है, बल्कि आने वाले वर्षों में झारखंड के प्रशासनिक ढांचे के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी.