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रांची/डेस्क: सावन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाए जाने वाला हरियाली तीज का पावन पर्व, इस बार 27 जुलाई यानी आज देशभर में भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जा रहा हैं. यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है और ऐसी मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से व्रत और पूजन करने वाली महिलाओं को मनचाहा वरदान प्राप्त होता हैं.
व्रत का महत्व और विधि:
हरियाली तीज के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सौभाग्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. वे सोलह श्रृंगार कर भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा करती हैं. कुंवारी कन्याएं भी उत्तम वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत कथा का पाठ करना बेहद फलदायी माना जाता हैं.
हरियाली तीज व्रत कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी. पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती ने बचपन से ही शिव को अपना आराध्य मान लिया था. उनकी कठोर तपस्या से चिंतित होकर, एक बार देवर्षि नारद ने पर्वतराज को भगवान विष्णु से पार्वती के विवाह का प्रस्ताव दिया. पर्वतराज सहर्ष तैयार हो गए और उन्होंने यह संदेश पार्वती तक पहुंचाया.
भगवान शिव को मन ही मन पति मान चुकी माता पार्वती इस बात से अत्यंत निराश हुई. उन्होंने अपनी सहेली की मदद से एक घने जंगल की गुफा में जाकर स्वयं को छिपा लिया. वहां उन्होंने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण किया और भगवान शिव की घोर तपस्या में लीन हो गई. यह तपस्या भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में शुरू हुई थी और माता पार्वती ने इस दौरान निर्जला व्रत रखा.
माता पार्वती की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया. इसके बाद ही माता पार्वती ने अपने व्रत का पारण किया. इधर, पुत्री को खोजते हुए पर्वतराज उस गुफा तक पहुंचे. पार्वती ने उन्हें अपने घर छोड़ने और गुफा में रहने का कारण बताया. उन्होंने बताया कि किस प्रकार भगवान शिव ने उनका वरण कर लिया है और उन्होंने अपने संकल्प को पूरा कर लिया हैं. पर्वतराज ने भगवान विष्णु से क्षमा मांगी और अपनी पुत्री पार्वती का विवाह विधि-विधान से भगवान शिव से करवा दिया. इस प्रकार, भगवान शिव और माता पार्वती का एक बार फिर मिलन संभव हो पाया.