प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: झारखंड का यह जिला खेल और कौशल विकास की दिशा में कई घोषणाओं और योजनाओं का गवाह बना है, लेकिन हकीकत में तस्वीर बेहद निराशाजनक है. मैदान सूने हैं, स्विमिंग पूल गंदगी से अटे पड़े हैं और करोड़ों रुपये की लागत से बने सेंटर बंद पड़े हैं. सरकारी वादे और योजनाएं यहां के युवाओं के सपनों पर भारी पड़ रही हैं, वादों और आंकड़ों का खेल हजारीबाग में कुछ प्रशिक्षण केंद्र सक्रिय हैं, जिनमें सैकड़ों युवाओं को ट्रेनिंग और प्लेसमेंट मिला है.
50 करोड़ रुपये की लागत से बना साई सेंटर जिले की सबसे बड़ी विफलताओं में गिना जा रहा
आंकड़े बताते हैं कि सौ से अधिक बैच नामांकित हुए और कई युवाओं को रोजगार भी मिला, लेकिन जिले की वास्तविक आवश्यकता के मुकाबले यह बहुत कम है. संत कोलम्बा कॉलेज जैसे संस्थानों में जिम, डीवीसी में स्विमिंग पूल, एथलेटिक्स ट्रैक, टेनिस और बास्केटबॉल कोर्ट जैसी सुविधाएं हैं, मगर इनका उपयोग सीमित खिलाड़ियों और आयोजनों तक ही रह जाता है. खेलो इंडिया और साई के तहत सिंथेटिक हॉकी टर्फ जैसी परियोजनाएं सूचीबद्ध हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन बेहद धीमा है. 50 करोड़ रुपये की लागत से बना साई सेंटर जिले की सबसे बड़ी विफलताओं में गिना जा रहा है. मात्र तीन साल संचालन के बाद इसे बंद कर दिया गया. कारण बताया गया कि शहर से दूरी होने के कारण खिलाड़ी वहां नहीं ठहरते थे, लेकिन इतना भारी निवेश करने के बाद सेंटर को बंद करना होनहार खिलाड़ियों के साथ नाइंसाफी है.
गंदगी में तैरता स्विमिंग पूल
हजारीबाग तैराकी संघ के सचिव प्रह्लाद सिंह का कहना है कि जिला प्रशासन ध्यान दे तो यहां से राष्ट्रीय स्तर के तैराक निकल सकते हैं. लेकिन हकीकत यह है कि डीवीसी का स्विमिंग पूल कूड़े-कचरे का अड्डा बन चुका है. तत्कालीन उपायुक्त रविशंकर शुक्ला के कार्यकाल में एनटीपीसी के सीएसआर फंड से आधुनिक पूल बनने की योजना तत्कालीन उपायुक्त के ट्रांसफर के बाद अधर में लटक गई. निजी क्लबों में पूल मौजूद हैं, लेकिन गरीब और प्रतिभाशाली तैराकों के लिए वे सुलभ नहीं हैं.
खेल प्रतिभा, पर अवसर नहीं
एथलेटिक्स झारखंड के टेक्निकल चेयरमैन मो. अनवर बताते हैं कि जूनियर स्तर पर हजारीबाग के खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन करते हैं. क्योंकि यहां रेजिडेंशियल सेंटर और बोर्डिंग की सुविधा है. लेकिन सीनियर स्तर पर कोई व्यवस्था न होने के कारण खिलाड़ी खेल छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं. यहाँ एक्सेलेंसी सेंटर का निर्माण सबसे जरुरी है. खिलाड़ियों को खेल में भविस्य भी दिखना चाहिए. वॉलीबॉल में हजारीबाग के सीनियर खिलाड़ी आल इंडिया सीबीएसी क्लस्टर में बेहतरीन प्रदर्शन किये है. कुश्ती, शूटिंग व फुटबॉल में अधूरी सुविधाएं खिलाड़ियों की राह रोक रही हैं. सुधार की राह: हजारीबाग में अगर खेल व खिलाड़ियों को एक नहीं राह व पहचान देनी है तो माहवारी/त्रैमासिक स्पोर्ट्स लीग आयोजित करने होंगे ताकि प्रतिभा की पहचान हो सके. प्रशिक्षित कोच और अपस्किलिंग प्रोग्राम से ट्रेनिंग क्वालिटी में सुधार करना होगा. पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप से स्किल ट्रेनिंग का विस्तार करना होगा. स्थानीय उद्योगों और कंपनियों से खिलाड़ियों को रोजगार व स्पॉन्सरशिप देना होगा.
हजारीबाग की धरती में क्षमता की कोई कमी नहीं, कमी सिर्फ इरादों की है. अगर प्रशासन, शैक्षणिक संस्थान और निजी क्षेत्र मिलकर ठोस कदम उठाएं, तो आने वाले वर्षों में यह जिला देश के खेल और कौशल मानचित्र पर स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो सकता है. वरना यहां की आने वाली पीढ़ी सिर्फ खंडहर स्टेडियम और बंद स्किल-सेंटर की कहानियां सुनती रह जाएगी.