प्रशांत शर्मा/न्यूज 11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: बरकट्ठा प्रखंड क्षेत्र के शिलाड़ीह पंचायत अंतर्गत ग्राम तुर्कडीहा में अब तक विकास की किरण नहीं पहुंची है . ग्रामीण और नोनीहाल बच्चे जान जोखिम डालकर नदी पार करते हैं और रोजमर्रा की सामग्री व स्कूल जाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं . विदित हो कि आदिवासी बाहुल गांव तुर्कडीहा आज अपनी दुर्दशा पर आंसु बहा रहा है. कभी शिक्षा का मिसाल रहा यह गांव पुरी तरह बुनियादी सुविधाओं से वंचित है. जहां एक तरफ सरकार शिक्षा, सड़क ,स्वास्थ्य व आवास देने की दावे करती है, वहीं यह गांव इन सुविधाओं से अभी भी कोसो दूर है. यदि कोई बीमार हो जाय तो खटिया आ पीठ पर बैठा कर नदी पार कर इलाज के अस्पताल ले जाया जाता है. होलिक्रास संस्था ने इस गांव को आदर्श बनाने की पहल करते हुए रेशम किट पालन केंद्र खोलने का प्रयास किया था. लेकिन परियोजना खत्म होते ही गांव को विकास के नक्शे से हटा दिया गया. वहीं जंगली हथियों ने इस गांव मे दर्जनों मवेशियों को पांच वर्ष पूर्व रौंद डाला था. हथियों का उत्पात मे क्षति को देखने तत्कालीन उपायुक्त मनीष रंजन के द्वारा क्षेत्र भर्मण कर जायजा लिया गया था. दूसरी ओर नदी में बरसात के दिनों में अधिक पानी रहने के कारण चेक डेम के दिवार के सहारे बच्चे नदी पार कर स्कूल जाते है जिससे वर्षा मे फिसलने और दुर्घटना की असंका बनी रहती है. वर्षा के दिनों प्रखंड मुख्यालय से सम्पर्क कट जाता है.आवागमन में हो रही परेशानी को देखते हुए ग्रामीणों ने श्रमदान कर बिजली पोल को ही आवागमन का सहारा नदी पार करने के लिए बना लिया है.
इस निमित्त स्थानीय निवासी जॉन पीटर ने बताया कि हम लोग पुल बनाने की मांग को लेकर कई बार जनप्रतिनिधियों को आग्रह किए हैं लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिलता है. इसलिए इस बार हम लोग श्रमदान करके नदी पार करने के लिए विद्युत का पोल लगा दिए हैं.
धर्म परिवर्तन व शिक्षा का इतिहास रहा है.
अंग्रेजी हुकूमत के समय अफसर शिकार के लिए तुर्कडीहा आया करते थे. उनके साथ रह कर गांव के लोग भी कैथोलिक धर्म की ओर झुक गये थे और 1988 से मिशीनरी की सक्रियता बढ़ गई. 1992 मे होलिक्रास समाज सेवा केंद्र हज़ारीबाग द्वारा इस गांव को पूर्ण साक्षर गांव का दर्जा मिला था. आजादी के 78 साल बाद भी यहॉ आंगनबाड़ी केंद्र भी नहीं हैं . बच्चो को पढ़ने के लिए नदी पार कर उत्क्रमित मध्य विद्यालय चामुदोहर जाना पड़ता है. या फिर पांच किलोमीटर दूर बुनियादी मध्य विद्यालय बेलकपी जाना पड़ता है. स्वास्थ्य की स्थिति यह है की कोई डॉक्टर गांव नही पहुंच पाते.