प्रशांत/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: कभी अपनी शांत वादियों और नैसर्गिक सौंदर्य के लिए जाना जाने वाला हजारीबाग अब देह व्यापार के एक विकराल नासूर से जूझ रहा है. शहर से सटे सिंघानी रोड स्थित होटलों में खुलेआम चल रहा जिस्मफरोशी का धंधा अब इस शांत शहर के ताने-बाने को अंदर से खोखला कर रहा है. वर्षों से बेरोकटोक जारी यह अवैध व्यापार अब एक गंभीर प्रश्न खड़ा करता है. क्या इस धंधे को पुलिस का संरक्षण मिला हुआ है?
सिंघानी: जिस्मफरोशी का नया गढ़
सिंघानी रोड पर स्थित होटल जो कभी यात्रियों के लिए विश्राम स्थल हुआ करते थे. अब रात के अंधेरे में देह व्यापार के अड्डों में तब्दील हो चुके हैं. सूरज ढलते ही इन होटलों में चहल-पहल बढ़ जाती है और रातें रंगीन होने लगती हैं लेकिन इस रंगीनियत के पीछे छिपा है कानून का उल्लंघन और मानवीय शोषण का काला सच. स्थानीय निवासियों और विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो यह धंधा वर्षों से निर्बाध रूप से चल रहा है. इससे पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं.
पुलिस की संदिग्ध भूमिका: संरक्षण या सूचना तंत्र की विफलता?
इस पूरे प्रकरण में हजारीबाग पुलिस की भूमिका बेहद संदिग्ध नजर आती है. एक ओर जहां यह धंधा बेखौफ फल-फूल रहा है वहीं दूसरी ओर पुलिस की निष्क्रियता आश्चर्यजनक है. यदि पुलिस को इस गोरखधंधे की जानकारी नहीं है तो यह उनके सूचना तंत्र की घोर विफलता को दर्शाता है. जो एक संवेदनशील जिले की कानून-व्यवस्था के लिए चिंताजनक है. वहीं यदि पुलिस को इसकी जानकारी है और फिर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है तो यह स्पष्ट रूप से पुलिसिया संरक्षण की ओर इशारा करता है. यह स्थिति कानून के रखवालों पर से आम जनता के विश्वास को डिगा सकती है.
पुलिस कप्तान के सामने दोहरी चुनौती
हजारीबाग के पुलिस कप्तान के लिए यह केवल देह व्यापार के बढ़ते जाल को खत्म करने की चुनौती नहीं है बल्कि इससे भी बड़ी चुनौती है पुलिस की कार्यशैली में सुधार लाना. इस तरह के गंभीर अपराधों का वर्षों से बेरोकटोक चलना पुलिस विभाग की छवि को धूमिल कर रहा है. उन्हें न केवल सिंघानी और आसपास के इलाकों में चल रहे देह व्यापार के अड्डों पर तुरंत और प्रभावी कार्रवाई करनी होगी बल्कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसे अवैध धंधे पनप न सकें. इसके लिए उन्हें अपने अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों को जवाबदेह ठहराना होगा और एक मजबूत, भ्रष्टाचार मुक्त पुलिसिंग को बढ़ावा देना होगा. हजारीबाग की शांति और उसकी पहचान को बचाने के लिए अब आवश्यक है कि प्रशासन इस 'विषैले' नासूर को जड़ से उखाड़ फेंके और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाए. यह देखना बाकी है कि क्या पुलिस कप्तान इस चुनौती को स्वीकार कर हजारीबाग को इस कलंक से मुक्ति दिला पाते हैं.
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