प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: एक समय था जब हाथी जंगलों में शांंत विचरण करते थे और मानव बस्तियाँ उनसे कोसों दूर हुआ करती थीं. लेकिन अब समय बदल गया है. जंगलों की अंधाधुंध कटाई, खनन और बेतरतीब विकास ने वन्यजीवों का प्राकृतिक ठिकाना छीन लिया है. नतीजा यह है कि आज हाथी गांवों में घुसकर घरों को रौंद रहे हैं और फसलें बर्बाद कर रहे हैं.बीते कुछ वर्षों में बरकट्ठा क्षेत्र में मानव-हाथी संघर्ष के मामले तेजी से बढ़े हैं. इनके आतंक से लोग रत जगा करने को विवश हैं .वहीं झुंड में आने वाले हाथी खेतों को मिनटों में तबाह कर देते हैं. कई बार यह संघर्ष जान-माल की हानि में बदल जाता है. दुुसरे ओर मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए जंगलों की अंधाधुंध कटाई शुरू की. शहर, सड़क, खदान और खेत बनाने के लिए जंगलों को नष्ट कर दिया गया. वही जंगल जो हाथियों का घर थे, उन्हें उजाड़ दिया गया. जैसे-जैसे जंगल घटे, हाथियों का भोजन और आश्रय भी छिन गया.
अब भूख और भटकाव के कारण हाथी गांवों का रुख कर रहे हैं. वे खेतों में घुसकर फसलों को खा जाते हैं, कभी-कभी घरों को भी नुकसान पहुंचाते हैं. कई बार यह संघर्ष जानलेवा भी साबित होता है.
यह स्थिति किसी की गलती नहीं, बल्कि हमारे विकास के एकतरफा सोच का नतीजा है. हाथी कोई अपराधी नहीं, बल्कि वह पीड़ित है. उसे सिर्फ जीने की जगह चाहिए, जो हमने उससे छीन ली.किसान बताते हैं, "पहले हम जंगल को काटते गए, सोचा नहीं कि जानवरों का क्या होगा. अब वही जानवर भूखे-प्यासे हमारे खेतों में आ रहे हैं. फसल बचाना मुश्किल हो गया है."
वन विभाग की भूमिका पर भी उठ रहे सवाल
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि वन विभाग को पहले से जानकारी देने के बावजूद कार्रवाई देर से होती है. कई बार तो लोग खुद ही मशाल, ढोल-नगाड़ा और पटाखों से हाथियों को भगाते हैं, जिससे कभी-कभी वे और आक्रामक हो जाते हैं.वहीं पर्यावरणविदों का कहना है कि हाथियों के पारंपरिक रास्तों को अवैध निर्माण और खनन परियोजनाओं ने अवरुद्ध कर दिया है. इससे हाथी अब नए रास्तों की तलाश में गांवों की ओर बढ़ते हैं. यह उनके अस्तित्व की लड़ाई बन गई है.