बिट्टू/न्यूज़11 भारत
बगोदर/डेस्क: जब पूरा देश अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर श्रमिकों को सम्मान देने और उनके अधिकारों की रक्षा का संकल्प दोहरा रहा था, उसी दिन गिरिडीह जिला अंतर्गत बगोदर के घाघरा कॉलेज परिसर से एक अमानवीय और शर्मनाक तस्वीर सामने आई. यहां निर्माणाधीन पुस्तकालय भवन में ठेकेदार द्वारा मजदूरों से काम करवाया गया. मई दिवस की छुट्टी न देकर उनसे सामान्य दिनों की तरह मजदूरी ली गई.
सबको छुट्टी, पर मजदूरों को नहीं!
यह विडंबना ही नहीं, अन्याय भी है कि जिन मजदूरों के सम्मान में मजदूर दिवस मनाया जाता है, उन्हीं को उस दिन सबसे अधिक पसीना बहाना पड़ा. जबकि सरकारी, गैर-सरकारी कार्यालयों, स्कूल-कॉलेजों और तमाम संस्थानों में छुट्टी घोषित थी. उन्हीं संस्थानों की नींव रखने वाले मजदूरों को छुट्टी नसीब नहीं हुई.
पुस्तकालय निर्माण स्थल वही था जहां छात्रों को मई दिवस के मौके पर विश्राम मिला, लेकिन मजदूरों से उस दिन भी मजदूरी ली गई, यह संवेदनहीनता नहीं, तो और क्या? ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या मजदूर दिवस महज रस्म अदायगी बनकर रह गया है?
जब मेहनत की कोई कीमत नहीं
यह इलाका पहले से ही मजदूर पलायन के लिए जाना जाता है. जब अपने ही घर में मेहनत का मोल न मिले, जब मजदूरी की इज्जत पैरों तले रौंदी जाए, तो मजबूरन मजदूरों को सात समंदर पार परदेस की राह पकड़नी पड़ती है. यह अमानवीय शोषण उन्हीं ठेकेदारों की देन है, जो न कानून मानते हैं, न इंसानियत.
इस शर्मनाक घटना पर बगोदर विधायक नागेंद्र महतो ने तीखी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा, "मजदूर दिवस पर मजदूरों से काम करवाना उनके आत्मसम्मान और अधिकारों का खुला अपमान है. यह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता."विधायक ने मामले की जानकारी उपायुक्त को देते हुए संबंधित ठेकेदार को ब्लैकलिस्टेड करने की मांग की है. उन्होंने प्रशासन से जवाब भी मांगा कि "ऐसे गैर-जिम्मेदार और संवेदनहीन ठेकेदारों पर कार्रवाई में देरी क्यों होती है?" यह मामला अब तूल पकड़ चुका है लोगों के बीच गुस्सा है, स्थानीय लोग सवाल पूछ रहे हैं, "क्या मजदूर दिवस सिर्फ छुट्टी का नाम भर रह गया है?