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थार रेगिस्तान में भी बह रही है भागीरथी नदी

गंगा नहर, मरु गंगा से राजस्थान नहर उसके बाद बन गई है इंदिरा नहर
थार रेगिस्तान में भी बह रही है भागीरथी नदी

उपेन्द्र सिंह/न्यूज11 भारत 


रांची/डेस्क: बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने 1927 में रेगिस्तान का सीना चीरते हुए पंजाब की व्यास और सतलुज नदियों का पानी रेगिस्तानी इलाके बीकानेर लाने को ठानी और गंगा नहर का निर्माण करवा दिया और इसे मरु गंगा भी कहा जाने लगा. रियासत के सचिव और चीफ इंजीनियर कंवर सेन ने भारत सरकार के सामने 1948 राजस्थान नहर का पहला प्रस्ताव रखा. 10 सालो बाद 31 मार्च 1958 को केंद्रीय गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने इसकी शुरुआत करते हुए इसकी नींव डाली और बजट रखा गया. 64 करोड़ लेकिन वर्तमान में अब तक इस पर 3 हजार करोड़ से भी अधिक खर्च हो गया है. 650 किलोमीटर लंबी पंजाब में फिरोजपुर के पास सतलज और ब्यास नदी पर बने हरिके बैराज से इस गंगा नहर की शुरूआत होती है. 


नवंबर 1984 में तत्कालीन राजस्थान सरकार ने राजस्थान कैनाल का नाम इंदिरा नहर रख दिया और इसकी महत्ता भागीरथी से कम नही है. इस लिए इसको रेगिस्तान के भागीरथी नदी कहते हुए लोग मान देते है क्यों कभी मात्र रेत के बवंडर और दूर-दूर तक मृग-मरीचिका दिखाने वाले इस मौत के इलाके का स्वरूप पुरा बदल गया है.


विश्व की सबसे बड़ी मानव निर्मित नहर भारत की मरू गंगा: फसलों का हो रहा रिकॉर्ड उत्पादन


इस 650 किमी लम्बी मरु गंगा और इससे निकलने वाली उप-नहरों को जोड़ दे, तो इसकी लम्बाई 9 हजार किमी के लगभग है ना केवल इस नहर ने यहां हरियाली ला दिया बल्कि सम्पन्नता के साथ साथ इस इलाके को पर्यावरण का स्वर्ग बना डाला है. रेगिस्तान के निवासियों ने इस गंगा की पूजा अर्चना करते हुए अपनी जीवनशैली ही बदल डाली है अब तमाम तरह के फसलो को उपजा कर लोग बेहतरीन कृषक बन चुके है.


श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ और बीकानेर इलाके देश में सबसे अधिक चना इसी नहरी इलाक़ों में पैदा हो रहा है. रिकॉर्ड कपास उत्पादन की बात हो या देश-विदेश में सुप्रसिद्ध माल्टा और किन्नू इंदिरा नहर की ही उपज है. बाड़मेर में अनार की खेती हो रही है और ये देश भर के बड़ी-बड़ी मण्डियों से होते हुए भारत के साथ-साथ विदेशो तक का सफर कर रही है. साथ ही  महंगे जैतून और एलोवेरा की अच्छी खेती हो रही है. साथ ही प्रसिद्ध यूरोपियन लाल भिंडी का उत्पादन बीकानेर के नहरी इलाके़ नोखा में हो रहा है और हर साल पांच हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा का अन्न भी किसान उपजा रहे है. लगभग ढाई हज़ार से ज्यादा गांवों तक इसका पानी पहुंच रहा है और नौ ज़िलों से ज्यादा परिवारों का प्यास बुझा रही है. यह नहर से पूरे इलाके बड़े-बड़े पेड़ों और झाड़ से वन का आभास होता है. इस हरियाली का असर से नाम मात्र के बरसात को बदलते हुए अब कई गुणा बेहतरीन बरसात हो रही है.


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भारतीय सेना के लिए वरदान है बॉर्डर इलाके की यह सुरक्षा प्रहरी नहर


श्रीगंगानगर से लेकर बीकानेर, जैसलमेर होते हुए बाड़मेर तक के इंदिरा नहर के सैनिक स्वरूप की बात की जाए तो यह भारतीय सेना के लिए नहर सुरक्षा प्रहरी का कार्य करती है. इसको एक बेहतरीन रणनीति के तहत इसको पाकिस्तान की बॉर्डर के समांतर इसकी ढलान जानबूझकर पाकिस्तान की तरफ बना कर रखी गई है. रक्षा विशेषज्ञों की माने तो इस रेगिस्तानी इलाक़ों में अगर पाकिस्तान से युद्ध हुआ, तो इस इलाके में टैंक युद्ध होगा. तब तारबंदी पाकिस्तान के टैंको को नही रोक पाएंगी और यहीं पर इंदिरा नहर सुरक्षा कवच का काम करेगी. आपात स्थिति को देखकर सेना अचूक हथियार में नहर को तोड़ पाकिस्तान की तरफ पानी छोड़ देगी. इस इलाके में भुमिगत जल संग्रहण हौज बनाये गए है, जिसमे करोड़ों  लीटर पानी भरा रहता है और कई देशों की तरह पाक टैंक के आगे बढ़ने से पहले ही नहर का पानी पूरे इलाके को फिरों में जाकर पानी के घर के पास बिल्डिंग बनाया जाएगा दलदल बना देगा और पाक के टैंक इन मे फंस कर जमींदोज हो जाएंगे.


विलुप्त सरस्वती नदी का साक्ष्य वाला क्षेत्र में मीठे जल की खोज


जैसलमेर रेगिस्तान में तो ओएनजीसी ने ऑपरेशन सरस्वती अभियान चला कर विशेष खोज करते हुए कुएं खोदे साथ ही बीएसएफ ने प्रयोग करते हुऐ लुप्त हुई सरस्वती नदी के प्रवाह मार्ग पर कुएं खोजे, जहां 24 घंटे मीठा पानी लोगो को सुलभ हो रहा है.

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