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रांची/डेस्क: 267वें पोप का चुनाव एक ऐसे ऐतिहासिक अनुष्ठान से गुजरनेवाला है, जो एक समय रिक्त सिंहासन की स्थिति से बचने के लिए शुरू किया गया था. इस चुनाव में दो तिहाई बहुमत से पोप का चयन आवश्यक है, और इस प्रक्रिया में एक गहरी आध्यात्मिकता और गुप्तता की छाप है. अगले कुछ दिनों तक, सिस्टीन चैपल का दरवाजा दुनिया के लिए एक बार फिर खुलने वाला है, और फिर कुछ समय के लिए यह पूरी तरह बंद हो जाएगा. 7 मई से शुरू होने वाले कॉन्क्लेव में कार्डिनल निर्वाचक अपने अगले पोप का चुनाव करेंगे. यह 76वाँ कॉन्क्लेव कलीसिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा, क्योंकि यह माइकल एंजेलो की काव्यात्मक "अंतिम न्याय" की कलाकृति के साये में आयोजित होगा.
कॉन्क्लेव: एक ऐतिहासिक शब्द
"कॉन्क्लेव" शब्द लैटिन के "कुम-क्लावे" से आया है, जिसका मतलब होता है ‘चाबी से बंद किया गया स्थान’. यह शब्द न केवल उस बंद स्थान को दर्शाता है जहाँ पोप का चुनाव होता है, बल्कि उन कार्डिनलों को भी दर्शाता है जो इस चुनाव में भाग लेते हैं. इस अनुष्ठान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पोप का चुनाव पूरी तरह से स्वतंत्र और गुप्त हो.
पोप के चुनाव का इतिहास
कॉन्क्लेव की शुरुआत 1274 में पोप ग्रेगरी 10 वे द्वारा की गई थी, और उस समय से लेकर आज तक, यह एक धार्मिक और राजनीतिक प्रक्रिया रही है. कलीसिया के पहले दिनों में, पोप का चुनाव स्थानीय समुदाय और धर्माध्यक्षों द्वारा किया जाता था, लेकिन समय के साथ बाहरी शक्तियाँ भी इसमें हस्तक्षेप करने लगीं. 1059 में पोप निकोलस द्वितीय ने "इन नोमिने डोमिनी" नामक दस्तावेज जारी किया, जिससे यह तय हुआ कि केवल कार्डिनल्स ही पोप का चुनाव करेंगे. इसके बाद 1179 में अलेक्जेंडर तृतीय ने संविधान "लिसेट दी वितांदा" में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता को स्थापित किया, जो आज तक मान्य है.
कॉन्क्लेव के इतिहास में महत्वपूर्ण मोड़
1276 में अरेज़ो में आयोजित पहले कॉन्क्लेव ने इस प्रक्रिया को नए रूप में प्रस्तुत किया. 1621 में पोप ग्रेगरी 15 ने गुप्त और लिखित वोटिंग को अनिवार्य किया, और 1904 में पोप पियस 10 ने विशिष्टता के कथित अधिकार पर प्रतिबंध लगा दिया. 1945 में पोप पियस 12 द्वारा लागू "वकंतिस एपोस्तोलिके सेदिस" संविधान ने कई सुधार किए, जिनमें कार्डिनलों के कार्यालय से मुक्त होने और केवल 80 वर्ष की आयु तक चुनाव करने का प्रावधान शामिल था.
पोप के चुनाव के वर्तमान नियम
आज के दौर में, पोप के चुनाव के लिए "यूनिवर्सी डोमिनिची ग्रेजिस" कानून लागू है, जो 1996 में पोप जॉन पॉल द्वितीय द्वारा पेश किया गया था. इस कानून के तहत, कॉन्क्लेव को सिस्टीन चैपल में ही आयोजित किया जाता है, जो कि "विया पुलक्रितुदिनिस" अर्थात "सौंदर्य का मार्ग" के रूप में परिभाषित किया गया है. इस मार्ग के माध्यम से, कार्डिनल्स शाश्वत ईश्वर की ओर आकर्षित होते हैं. अगर 34 मतदानों के बाद भी कोई चुनाव नहीं होता, तो अंतिम मतदान में सबसे अधिक वोट पाने वाले दो नामों पर फिर से मतदान होता है, लेकिन दो-तिहाई बहुमत का नियम बरकरार रहता है.
267वें पोप का चुनाव: एक नई शुरुआत
अब, माइकल एंजेलो के भित्तिचित्रों के नीचे, सिस्टीन चैपल में कलीसिया का एक नया अध्याय शुरू होने वाला है. इस समय पूरी दुनिया की नजरें इस "विया पुलक्रितुदिनिस" पर टिकी हुई हैं, जो अगले पोप के चेहरे और उनके नाम के उद्घाटन का इंतजार कर रही है. रोम के नए धर्माध्यक्ष का चुनाव, एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में, दुनिया भर में एक नई शुरुआत का संकेत देगा.
वेटिकन फायर ब्रिगेड ने आज सुबह चिमनी स्थापित की है, जो सफेद धुएं के साथ नए पोप के चुनाव की घोषणा करेगी. कार्डिनल 7 मई से कॉन्क्लेव शुरू करने के लिए सिस्टीन चैपल में मिलेंगे. आज चिमनी के कामकाज की जांच के लिए परीक्षण किए जा सकते हैं.