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रांची : पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से झारखंड में कई ऐसे खाद्य पदार्थ मिलते हैं जिनका देश के बाकि क्षेत्रों में मिलना मुश्किल होता है. जैसे झारखण्ड में मानसून के दौरान सखुआ के जंगलों में मिलने वाला 'शाकाहारी मटन' रुगड़ा सावन के महीने होने की वजह से काफी लोग मांस-मछली का सेवन इस दौरान नहीं करते उनके लिए रुगडा एक पसंदीदा विकल्प होता है. लोगों को इसका स्वाद बहुत पसंद आता है, तभी तो 1600 रूपये किलो के भाव पर भी लोग इसे खरीदते और खाते हैं. बारिश के शुरू होते ही झारखंड के बाजारों में रुगड़ा मिलना शुरू हो गया है. शुरुआती दौर में रुगड़ा की कीमत काफी ज्यादा रहती है. अभी बाजारों में इसका भाव 1600 रुपए किलो के आसपास है.
काफी मशक्कत भरा होता है रुगड़ा ढूंढने और निकलने का प्रोसेस
बता दें, रुगड़ा को ग्रामिणों के प्राकृतिक आजीविका का साधन माना जाता है. इसे ज्यादातर सखुआ के जंगलों के आस पास बसे गांवों में पाया जाता है. ग्रामीण द्वारा इसको ढूंढने और निकलने का प्रोसेस काफी मेहनत और मशक्कत भरा होता है. बारिश के बाद सखुआ के जंगलों में जमीन में कुछ कुछ भाग उठा सा नजर आता है , जिसे डंठल से खोदने पर रुगडा मिलता है. जिसके बाद इसकी काफी साफ-सफाई भी करनी पड़ती है.
रुगड़ा में पाए जाते है कई तरह के पौष्टिक तत्व- डॉक्टर
डॉक्टर रुगड़ा में कई तरह के पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं. उच्च स्तर के प्रोटीन और विटामिन इसमें पाए जाते है. मसलन विटामिन-बी, विटामिन-सी, विटामिन-बी, कॉम्प्लेक्स, राइबोलेनिन, थाईमिन, विटामिन-बी12, फोलिक एसिड और लवण, कैल्शियम, फास्फोरस, पोटाशियम तथा ताम्बा पाए जाते हैं. इसमें प्रोटीन ज्यादा और कैलोरी कम होती है, जिससे कारण ये काफी हेल्दी भी माना जाता है. यह सुपाच्य होने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी होता है. हाई ब्लड प्रेशर और हाईपरटेंशन के रोगियों के लिए यह बहुत उपयुक्त माना जाता है. शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी यह बहुत सहायक है. इसके अलावा मोटापा कम करने में भी इसका उपयोग किया जाता है.
आदिवासियों के भोजन में प्रचलित है रूगड़ा
यह आदिवासियों के भोजन में प्राचीन काल से सम्मिलित है. सामान्यतः यह दो प्रकार का होता है सफेद और काला. जिसमें काला रुगड़ा का टेस्ट कुछ अलग ही होता है. और बारिश के सीजन के हिसाब से ये भी बढ़ता रहता है, जैसे-जैसे बारिश का सीजन खत्म होने लगता है वैसे-वैसे ये भी बुढ़ा होने लगता है. इसकी मांग ज्यादातर वर्षा ऋतु के प्रारंभिक और मध्य काल में होती है.