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रांची/डेस्क: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में जितने बड़े पैमने पर मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण चल रहा है, वहीं उतना ही जबरस्त विरोध विपक्षी दलों द्वारा भी लगातार जारी है. मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा है. पहले राउंड में तो विपक्ष को सर्वोच्च न्यायालय से झटका लग चुका है. अब इसी महीने सुप्रीम कोर्ट इस पर फिर से सुनवाई करने वाली है. लेकिन नहीं लगता नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट से कोी राहत मिलने वाली है.
सुप्रीम कोर्ट में अगल सुनवाई 12 अगस्त को होने वाली है. सुप्रीम कोर्ट इस बार चुनाव आयोग से सवाल करने वाले है. सवाल करीब 65 लाख मतदाताओं को सूची से बाहर करने को लेकर है. अगर चुनाव आयोग ने यह सिद्ध कर दिया कि उसने जिन लोगों को बाहर किया है. उसकी वजह वाजिब है. तब फिर विपक्ष के पास हाथ मलने के अलावा कोई और चारा नहीं रहेगा. चुनाव आयोग साफ-साफ कह रहा है उसने जिन लोगों को मतदाता सूची से बाहर किया है या तो वे अब इस दुनिया में नहीं है या फिर स्थायी रूप से उन्होंने राज्य को छोड़ दिया है. मृत्यु के कारण मतदाता सूची से मतदाताओं को बाहर करने को सिद्ध करने का मामला उतना जटिल नहीं है, लेकिन आयोग यह कैसे सिद्ध करेगा कि जिन्होंने राज्य स्थायी रूप से छोड़ दिया है, वाकई में अब बिहार से उनका कोई सम्बंध नहीं है.
खैर, विपक्ष को पास चुनाव से शिकायतें बहुत हैं. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि वह अदालत में 'जनता की अदालत' में चुनाव आयोग को खड़ा कर रहा है, लेकिन जिससे शिकायत है उसके पास अब तक अपनी कोई शिकायत लेकर वह नहीं पहुंचा है. 1 अगस्त को चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट पर मतदाताओं का एक ड्राफ्ट जारी कर दिया ताकि अगर उसमें कोई त्रुटि हो तो उसमें सुधार किया जा सके. पर हैरत की बात है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर शोर मचाने वाला विपक्ष त्रुटियों से संबंधित कोई दावा या आपत्ति दर्ज नहीं कराया है. यह जानकारी खुद चुनाव आयोग द्वारा दी गई है. बुधवार को एसआईआर बुलेटिन जारी कर चुनाव आयोग ने यह जानकारी दी है. आयोग ने बताया कि मतदाता सूची में योग्य नाम जोड़ने और अयोग्य नाम हटाने को लेकर 3,659 दावे तो प्राप्त हुए हैं. लेकिन पार्टियों की ओर से कोई आपत्ति अब तक नहीं आयी है. इसके अलावा 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के नए मतदाताओं की ओर से 19,186 आवेदन जरूर जमा किये गये हैं. तो क्या यह मान लिया जाये कि विपक्ष ने चुनाव आयोग के खिलाफ जो रुख अपनाया हुआ है, वह सिर्फ चुनावी शोर से ज्यादा कुछ भी नहीं है?