विडंबना.. हजारीबाग में खूब फल-फूल रहा अवैध शराब का कारोबार, विभाग ही बना संरक्षक
प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लगातार आदेश और निर्देश और डीसी नैंसी सहाय के कड़े रुख के बाद भी हजारीबाग का उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग अवैध एवं नकली शराब बनानेवालों पर अंकुश नहीं लगा पा रहा हैं. अलबत्ता विभाग के अधिकारी और धावा दल शराब माफिया पर सख्त कार्रवाई की बजाय वसूली अभियान में लगे हुए देखे जा सकते हैं. विभाग के अतिविश्वसनीय सूत्रों की मानें तो हजारीबाग प्रमंडल में तैनात सहायक आयुक्त से लेकर उत्पाद निरीक्षक से लेकर दारोगा स्तर के अधिकारियों की मासिक ऊपरी आय को देखा जाए तो यह लाखों में होती हैं. लगभग सभी अधिकारी और कर्मचारी पर आय से अधिक का मामला स्पष्ट बनता हैं. ऊपरी आय के बूते अधिकतर ने रिहायशी इलाकों में महगे फ्लैट खरीद रखे हैं. भ्रष्टाचार का गढ़ बने हजारीबाग में नाजायज मयकशी की शह देने वाले ऐसे विभागीय कर्मियों की संपत्ति अगर सही तरीके से जांची जाय तो यकीनन करोड़ों की नाजायज कमाई का पदाफाश हो सकता हैं.
लाखों लीटर नकली शराब का ऐसे होता है खेल
हजारीबाग के शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में शराब माफिया लगभग दो से तीन लाख लीटर देशी और विदेशी नकली शराब, जो विभिन्न नामी-गिरामी कम्पनी की होती है, उसका उत्पादन कर बाजारों में बेच रहे हैं. अंग्रेजी विदेशी नकली शराब की बोतलों पर भी रैपर, सील असली कम्पनी तरह होते हैं. माफियाओं ने शहर और ग्रामीण क्षेत्र में अवैध समानांतर कम्पनी स्थापित कर ली हैं. विभाग के अधिकारी को उनकी सत्यता का पता होता है, परन्तु वे ठोस कार्रवाई नहीं करते. जाहिर है, इसका कारण कहीं न कहीं उनकी मिलीभगत मानी जा रही हैं. पिछले दिनों चौपारण में एक अवैध बड़ी नकली कम्पनी पर शिकायत के बाद कार्रवाई की गई थी, परन्तु लेन-देन सेट होने के बाद फाइल को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. जिले में दर्जनभर जगहों पर नकली विदेशी शराब बनाने और बेचने का धंधा जोरो से चल रहा हैं. सूत्रों का कहना है कि विभाग के अधिकारी अपने धावा दल के साथ शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में छापामारी अभियान चलाते हैं. छापामारी अभियान में छोटे-मोटे शराब विक्रेता पर गाज गिरा कर बड़े अवैध शराब उत्पादन करने वालों को अपने घेरे में लेकर उनसे जमकर भयादोहन करते हैं. शहरी अथवा ग्रामीण क्षेत्र में सभी माफिया शराब उत्पादन करने वालों से एक मोटी रकम निर्धारित कर दी जाती है, जिसे अवैध शराब माफिया भुगतान करते हैं. विभाग की पंजी में छापामारी अंकित करने के लिए अधिकारी दलबल के साथ समय समय पर क्षेत्र में ड्रामेबाजी करते देखे जा सकते हैं. सूत्रों की मानें तो महुआ शराब का अवैध निर्माण भी जोर-शोर से हो रहा हैं. हरेक महुआ शराब निर्माता से अफसरों और विभाग के कर्मचारियों ने 40 से 50 हजार रुपए तक का 'मासिक चढ़ावा' बांध रखा है और अधिकारी नजराना वसूली के लिए उनके अड्डे पर भी सीधे पहुंच जाते हैं. जो शराब उत्पादन करने वाले 'नजराना' अदा नहीं करते उसे गिरफ्तार कर जेल भेजा जाता हैं. इतना ही नहीं, छापामारी में पकड़ी जानेवाली नकली देशी विदेशी शराब को अधिकारी अपने छोटे कर्मचारियों के हाथों खुलकर बेचने का भी काम करते हैं.
दुकान, ढाबों और होटलों में होती है नकली शराब की खपत
नकली शराब सरकारी दुकानों सहित बड़े-छोटे ढाबे और होटलों में आसानी से खपाई जाती हैं. इनके निर्माण में जो केमिकल और स्पिरिट का व्यवहार होता है, वो मानव शरीर के लिए अत्यन्त खतरनाक साबित होता हैं. कई दफा नकली शराब पीने से मौत के मामले भी सुर्खियों में सामने आ चुके हैं. हजारीबाग में तो नकली शराब के उत्पादन ने तो कुटीर उद्योग का रूप ले लिया हैं. बरही चौपारण, शहर के बड़ासी में खुलेआम नकली जहरीली शराब का उत्पादन कर उसकी बिक्री किए जाने की सूचना हैं. शहर और इसके आसपास सैकड़ों झोपड़ीनुमा दुकानों में भी अवैध शराब की विक्री केन्द्र चर्चा का विषय बना हुआ हैं. दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तो यह है कि विभागीय अफसर व कर्मी इस गोरखधंधे पर रोक लगाने की बजाय उन्हें संरक्षण देने में व्यस्त हैं जबकि पिछले दिनों सरकार ने अवैध शराब उत्पादन और इसकी बिक्री पर रोक लगाने का सख्त निर्देश दिया था. इसके बावजूद अफसरों पर कोई असर नहीं पड़ा. उनका तो शायद एक ही फॉर्मूला है 'नजराना' दीजिए, गोरखधंधा कीजिए.