न्यूज़11 भारत
रांची/डेस्क: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर कुल 50 फीसदी टैरिफ लगाने का आदेश जारी कर दिया हैं. ट्रंप ने इस आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए साफ कहा कि भारत की ओर से रूस से लगातार तेल आयात करने की वजह से यह फैसला लिया गया हैं. ट्रंप ने 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ जोड़कर कुल टैरिफ को 50 फीसदी तक पहुंचा दिया हैं.
इस फैसले के तुरंत बाद भारत की प्रतिक्रिया भी सामने आ गई. भारत ने इस कदम को अनुचित करार देते हुए कहा कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए हर जरुरी कदम उठाएगा. सवाल ये उठता है कि अब भारत क्या करेगा? क्या भारत घुटने टेकेगा या फिर रणनीतिक चाल चलेगा? दरअसल, इस टैरिफ के लागू होने से सबसे ज्यादा असर भारतीय निर्यातकों और खासकर छोटे-मध्यम उद्योगों पर पड़ सकता है लेकिन भारत के पास सात मजबूत विकल्प है, जो इस झटके को बेअसर कर सकते हैं.
पहला विकल्प- 21 दिन की मोहलत
ट्रंप का आदेश तुरंत लागू नहीं होगा. अमेरिका ने साफ किया है कि 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ 21 दिन बाद प्रभावी होगा. यानी भारत के पास अभी भी तीन हफ्तों का वक्त हैं. इस दौरान भारत और अमेरिका के बीच बातचीत के ज़रिए हल निकाला जा सकता हैं. यह समय रणनीतिक रूप से बेहद अहम हैं.
दूसरा विकल्प- अमेरिका से कूटनीतिक बातचीत
भारत अमेरिका के साथ टैरिफ को लेकर उच्च स्तरीय कूटनीतिक बातचीत कर सकता हैं. कार्यकारी आदेश की धारा 4(c) भारत को मौका देती है कि वह रूस से तेल आयात घटाकर अमेरिका से टैरिफ में राहत हासिल कर सकता हैं. भारत अगर तेल आयात सऊदी अरब, यूएई, इराक और नाइजीरिया जैसे देशों से बढ़ा दे, तो अमेरिका की नाराजगी कम हो सकती है, भले ही इससे लागत में बढ़ोतरी हो.
तीसरा विकल्प- WTO में कानूनी लड़ाई
भारत इस मुद्दे को वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) में उठा सकता हैं. WTO के सिद्धांतों के मुताबिक, किसी सदस्य देश के खिलाफ भेदभावपूर्ण टैरिफ लागू नहीं किया जा सकता. भारत इसे most-favored-nation के सिद्धांत के उल्लंघन के रूप में पेश कर सकता हैं. इसके अलावा भारत G20 और BRICS जैसे मंचों पर भी अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटा सकता हैं.
चौथा विकल्प- रूस के साथ रणनीतिक तालमेल
अगर मामला रूसी तेल का है, तो भारत रूस के साथ मिलकर नई व्यापारिक रणनीतियां बना सकता हैं. रुपये-रूबल लेन-देन प्रणाली को और मजबूत किया जा सकता है ताकि अमेरिकी प्रतिबंधों का असर कम हो. भारत दक्षिण अमेरिका या अफ्रीका के अन्य देशों से भी तेल खरीद पर विचार कर सकता है, हालांकि यह महंगा सौदा साबित हो सकता हैं. साथ ही भारत नवीकरणीय ऊर्जा और घरेलू उत्पादन पर भी ध्यान दे सकता हैं.
पांचवां विकल्प- जवाबी टैरिफ
भारत भी अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी टैरिफ लगा सकता हैं. 2019 में भी भारत ने बादाम, सेब और स्टील जैसे अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाया था. अब फिर से ऐसे कदम उठाए जा सकते है, खासकर कृषि और टेक्नोलॉजी उत्पादों पर.
छठा विकल्प- घरेलू उद्योगों को राहत
अमेरिकी टैरिफ से प्रभावित भारतीय कंपनियों को सरकार प्रोत्साहन और सब्सिडी देकर राहत दे सकती हैं. टेक्सटाइल, फार्मा और आईटी जैसे क्षेत्रों को सपोर्ट करके उन्हें प्रतिस्पर्धी बनाए रखा जा सकता हैं.
सातवां विकल्प- नए बाजारों की तलाश
भारत अमेरिका के विकल्प के तौर पर यूरोप, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीकी देशों में अपने उत्पादों के लिए नए बाजार तलाश सकता हैं. अमेरिका पर व्यापारिक निर्भरता घटाना अब भारत की प्राथमिकता हो सकती हैं. वर्ष 2024 में भारत का अमेरिका के साथ व्यापार घाटा 45.8 अरब डॉलर था, और इस टैरिफ के बाद इसमें इजाफा होना तय हैं.
अब सभी की नजरें भारत सरकार की अगली चाल पर हैं. क्या भारत कूटनीति से अमेरिका को मनाएगा या फिर सीधे मुकाबले के लिए तैयार होगा? आने वाले 21 दिन भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों की दिशा तय करेंगे.