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रांची/डेस्क: 9 अगस्त इतिहास ही नहीं, संस्कृति के संरक्षण को समर्पित बेहद खास दिवस है. 9 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी ने 'अंग्रेजो, भारत छोड़ा' का नारा दिया था. यह आन्दोलन कितना प्रभावशाली था कि अंग्रोजों को 1947 में भारत छोड़ना ही पड़ा और 15 अगस्त 1947 को देश को अंग्रेजों से आजादी मिल गयी. 9 अगस्त को आदिवासियों की संस्कृति की रक्षा के लिए विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है. 9 अगस्त के विश्व विश्व संस्कृत दिवस भी मना रहा है. वैसे संस्कृत दिवस का सम्बंध 9 अगस्त से नहीं है. संस्कृत दिवस हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है.
हम सभी जानते हैं कि संस्कृत विश्व की सबसे समृद्ध भाषा है. इसे समाज ने ही नहीं, विज्ञान ने भी स्वीकार किया है. नासा ने भी संस्कृत को मान्यता प्रदान की है. नासा का कहना है कि अंतरिक्ष यात्रियों को संदेश भेजने के लिए विश्व की संस्कृत सबसे सटीक भाषा है. ऐसा इसलिए क्योंकि किसी भी दूसरी भाषा में जब अंतरिक्ष यात्रियों को संदेश प्रेषित किया जाता हो तो उसका क्रम बदल जाता है और क्रम बदलने से उसके मायने भी बदल जाते हैं. लेकिन संस्कृत के साथ ऐसा नहीं है. संस्कृत की एक बड़ी खासियत यह है कि जब अंतरिक्ष यात्रियों को इस भाषा में संदेश भेजा जाता है, भले ही उसका क्रम बदल जाये, लेकिन उसके मायने नहीं बदलते.
खैर, आज दुनिया दूसरे दिवसों के साथ विश्व संस्कृत दिवस भी नहीं रही है. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपना संदेश जनता को दिया है. प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में कहा कि संस्कृत के विकास में केन्द्र सरकार ने कई काम किये हैं, जैसे, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना, संस्कृत शिक्षण केंद्रों की स्थापना, प्राचीन संस्कृत पांडुलिपियों के डिजिटलीकरण आदि जैसे अनेक अनुकरणीय काम देश में हुए हैं ताकि संस्कृत भाषा संरक्षण देकर उसे एक बार फिर से प्रतिष्ठित किया जा सके.
प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने संस्कृत के संवर्द्धन के लिए जो भी काम किये हैं, उसका लाभ विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं को मिला है. पीएम ने कहा कि संस्कृत अब धार्मिक कार्यों तक ही सीमित नहीं रह गयी है. अब ऐसी सम्भावनाएं पैदा की जा रही हैं इसका विकास कर इसको और बेहतर बनाया जा सके ताकि इस भाषा की समृद्धि को जो भी अधिकतम लाभ समाज को मिल सकता है, वह मिल सके.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि संस्कृत विश्वभाषा भी है और वैज्ञानिक भाषा भी. ऐसा माना जाता है कि यह अन्य भाषाओं की जननी है. संस्कृत विद्वानों के अनुसार सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं. इसी तरह से चारों ओर से जो रश्मियां निकलती हैं, उनकी संख्या 36 हो जाती है. इन 36 रश्मियों की ध्वनि से संस्कृत के 36 स्वर बने है. फिर संस्कृत एक मात्र भाषा न होकर, एक विचार है. एक संस्कार है. संस्कृत विश्व का कल्याण की बात करती है. इसकी मूल भावना में वसुदैव कुटुम्बकम् निहित है.