आशिष शास्त्री/न्यूज़11 भारत
रांची/डेस्क: महज एक सप्ताह के बाद हम भारत के आजादी की 79वीं वर्षगांठ मनाएंगे. तब पूरा देश उल्लास में नहाया हुआ रहेगा. लेकिन हमें यह आजादी एक कठिन राह से गुजरकर और बहुत-सी कुर्बानियाँ देकर हासिल हुई है. इस आजादी की कीमत हमने शहीदों के खून और देशवासियों के बलिदान से चुकाई है. यदि गुजरे इतिहास के पन्नों को खँगालें तो उन बलिदानों पर से परदा उठता है और उन दिनों की स्मृतियाँ ताजा हो उठती हैं.
प्राचीन काल में सिमडेगा को बीरू-केसलपुर परगना के नाम से जाना जाता था जो राजा कतंगदेव का राज्य था. राजा कतंगदेव के निधन के बाद महाराजा शिवकर्ण ने गद्दी संभाली. मुंडा एवं खड़िया जनजातियों के इस क्षेत्र आगमन लगभा 1441 ईसवी में हुआ जबकि उसके बाद ऊराँव जनजाति के लोग भी इस क्षेत्र में रोहतास से कुछ दशक बाद आये. कुछ समय के लिए यह कलिंग साम्राज्य का हिस्सा भी रहा और इसी क्रम में 1336 में गंग वंश के राजा हरिदेव इस क्षेत्र के शासक बने. उस वक्त यह पुरा क्षेत्र मुगल शासको और उसके बाद अंग्रेजों के जुल्म से त्राहिमाम करता था. सन 1914 ई में अंग्रेजों द्वारा सिमडेगा में थाना और कचहरी खोलने की कवायद शुरू की गई तो उस वक्त का मुख्य शहर और बाजार तामड़ा में सबसे पहले थाना खोलने का प्रस्ताव आया. लेकिन तामड़ा वासियों के विरोध के कारण थाना के लिए बीरू राजा के कचहरी के बगल का स्थान चुना गया और इससे कुछ दुरी के बाद अंग्रेजों की कचहरी बनाई गई. सन 1915 ईस्वी में सिमडेगा को अनुमंडल घोषित करते हुए यहां अंग्रेजों द्वारा थाना और कचहरी शुरू की गई.
उस वक्त बना थाना आज सदर थाना है और उस वक्त बनाई गई कचहरी आज पूर्व अनुमंडल कार्यालय है. जिसे अब धरोहर के रूप में संजोने की प्रक्रिया चल रही है. वर्तमान में थाना भवन की पुरानी खपरैल भवन की जगह नई भवन है. लेकिन कुछ दिनों पहले तक अनुमंडल कार्यालय अंग्रेजों द्वारा निर्मित कचहरी भवन में संचालित थी. जिसे हाल में नए भवन में स्थानांतरित किया गया है. अंग्रेजी शासनकाल में जब यहां थाना और कचहरी बनी तो अंग्रेजों के जुल्म भी बढे. उस वक्त यहां गाडी मोटर नहीं थे. व्यवसायी बैलों पर सामान लाद कर व्यापार के लिए जाते थे. जिसे लदनी बैल कहा जाता था. लदनी बैल व्यवस्था के व्यापार में अंग्रेजों के कर का दबाव पडने लगा. व्यापारी के साथ स्थानीय लोग भी घबराए. इसके बाद यहां आजादी के सपने देखने वाले कुछ युवा इस जुल्म के खिलाफ आगे आने लगे. उस वक्त गंगा विष्णु रोहिल्ला समेत कई युवा महात्मा गांधी और आजाद हिन्द फौज के संपर्क में आए और यहां भी आजादी की आंधी चल पडी. अन्ततः हमारे वीर स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियां और लड़ाई रंग लाई. 15 अगस्त सन 1947 को हमारी मातृभूमि भारतवर्ष में आजादी का सूर्योदय हुआ और पुरा देश आजादी के रंग में रंग गया.
हमारे सिमडेगा में भी आजादी का सूर्योदय उल्लास और उमंग लेकर आया और सिमडेगा में आजाद भारत का पहला तिरंगा अंग्रेजो के बनाए कचहरी के प्राचीर में लहराने लगा. 15 अगस्त 1947 को सिमडेगा के वर्तमान अनुमंडल कार्यालय के प्राचीर पर तत्कालीन एसडीओ एसके चक्रवर्ती ने ध्वजारोहण किया. उस वक्त नरोत्तम शास्त्री और गंगा विष्णु रोहिल्ला आदि युवाओं ने देश भक्ति गीत और वंदे मातरम गाकर उस महौल को खुशनुमा बना दिया. उस वक्त ध्वजारोहण के पश्चात तत्कालीन एसडीओ एसके चक्रवर्ती ने देश भक्ति गीत प्रस्तुत करने पर सभी युवाओं को ईनाम भी दिया था.
अंग्रेजों की तानाशाही से आजादी के सुखमय सवेरे का गवाह बना यह ऐतिहासिक भवन अब धरोहर के रूप में संरक्षित होने की दिशा में कदम बढा दिया है. आने वाले समय में यह भवन एक संग्रहालय के रूप में विकसित होगा. जो सदियों तक आने वाली पीढ़ी को इतिहास से रूबरू कराता रहेगा.
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