न्यूज़11 भारत
बिहार/डेस्क: बिहार में चुनाव आयोग द्वारा कराए जा रहे SIR की पारदर्शिता पर अब गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में इस प्रक्रिया को मतदाताओं के साथ धोखाधड़ी करार दिया गया है. इस मामले में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने चुनाव आयोग की भूमिका पर गंभीर आपत्ति जताई है.
बिना अनुमति फॉर्म भरने का आरोप
RJD के राज्यसभा सांसद मनोज झाने कोर्ट में बताया कि राज्य के कई इलाकों में बीएलओ (BLO) खुद ही मतदाताओं के नाम पर फॉर्म भर रहे हैं. कई मामलों में तो मतदाताओं को इस बात की जानकारी तक नहीं दी गई. उनका आरोप है कि फॉर्म की कोई डुप्लीकेट कॉपी, रसीद या फोटो नहीं लिया गया, फिर भी फॉर्म ऑनलाइन अपलोड कर दिए गए. इतना ही नहीं, कई लोगों को SMS के जरिए जानकारी दी गई कि उनका फॉर्म जमा हो गया है, जबकि उन्होंने ऐसा कोई आवेदन किया ही नहीं.
मृत लोगों के नाम पर भी फॉर्म
ADR ने सुप्रीम कोर्ट में पेश अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि कई स्थानों पर मृत व्यक्तियों के नाम पर भी फॉर्म भरे गए हैं. रिपोर्ट के अनुसार, बिना दस्तावेजों और मतदाता की उपस्थिति के फॉर्म जमा कर दिए गए. यहां तक कि बीएलओ खुद ही दस्तखत कर रहे हैं और मतदाताओं से कोई संपर्क नहीं किया जा रहा. इससे SIR प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही की गंभीर कमी सामने आई है.
दस्तावेजों की अनिवार्यता पर विवाद
RJD ने यह भी आरोप लगाया कि पहली बार फॉर्म-6 के साथ नागरिकता का प्रमाण अनिवार्य कर दिया गया है. जबकि अब तक जन्मतिथि और निवास प्रमाण ही पर्याप्त थे. इससे लाखों नए मतदाताओं के नाम जुड़ने में बाधा उत्पन्न हो रही है. विपक्ष का मानना है कि यह कदम चुनिंदा वर्गों को मताधिकार से वंचित करने की साजिश हो सकता है.
सुप्रीम कोर्ट को याद दिलाया गया सुझाव
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की टिप्पणियों की भी याद दिलाई, जिन्होंने इस प्रक्रिया की आलोचना की थी. साथ ही, यह भी कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को पहचान के वैध दस्तावेज माना था. इसके बावजूद चुनाव आयोग ने इन सुझावों को नजरअंदाज कर दिया.
राजनीतिक रूप से संवेदनशील बना मामला
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यह मुद्दा राजनीतिक रूप से अत्यंत संवेदनशीलबन गया है. विपक्ष का कहना है कि यह पूरा अभियान एक पूर्व-नियोजित रणनीतिहो सकता है, जिसका मकसद मतदाता सूची से चुनिंदा नामों को हटाना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करना है.