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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के Pocket Veto फैसले पर उठाए सवाल, पूछें 14 अहम संवैधानिक सवाल

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के Pocket Veto फैसले पर उठाए सवाल, पूछें 14 अहम संवैधानिक सवाल

न्यूज़11 भारत


रांची/डेस्क: तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल आर.एन.रवि के बीच चल रही टकराव की पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने राजनीति से लेकर संवैधानिक गलियारों तक हलचल मचा दी हैं. फैसले में राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर निर्णय लेने की समय-सीमा तय कर दी गई थी लेकिन अब इस पर देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सवाल खड़े कर दिए हैं.

 

राष्ट्रपति ने संविधान के अनुछेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगते हुए 14 महत्वपूर्ण सवाल पूछे हैं. इन सवालों में न केवल राज्यपाल की शक्तियों की व्याख्या मांगी गई है बल्कि यह भी पूछा गया है कि क्या सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति या राज्यपाल को सीमित समय में निर्णय लेने के लिए बाध्य कर सकता हैं.

 

14 संवैधानिक सवाल:

राष्ट्रपति मुर्मू ने उन संवैधानिक जटिलताओं की ओर ध्यान दिलाया है जो विधेयकों की मंजूरी में देरी के मामलों में उत्पन्न होती हैं. उन्होंने सवाल उठाए है कि-

 


  1. अनुच्छेद 200 के तहत क्या राज्यपाल के समक्ष किसी विधेयक को प्रस्तुत करने पर संवैधानिक विकल्प हैं?

  2. क्या राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य होना चाहिए?

  3. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा संवैधानिक विवेकाधिकार का प्रयोग करना न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत आता है या नहीं?

  4. क्या अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल के कार्यों की न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता हैं?

  5. क्या राज्यपाल के लिए किसी विधेयक पर कार्रवाई के लिए समय-सीमा निर्धारित की जा सकती हैं.?

  6. क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक विवेकाधिकार का प्रयोग न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत आता है या नहीं?

  7. क्या राष्ट्रपति द्वारा विवेकाधिकार का प्रयोग करने के लिए भी समय-सीमा निर्धारित की जा सकती हैं?

  8. क्या राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के पास विधेयक भेजने की स्थिति में राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से राय लेना अनिवार्य हैं.?

  9. क्या अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णय कानून के प्रभावी होने से पहले न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत आते हैं? क्या विधेयक के कानून बनने से पहले उसकी सामग्री पर न्यायालय विचार कर सकता हैं?

  10. क्या अनुच्छेद 142 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल के संवैधानिक आदेशों को बदला जा सकता हैं?

  11. राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कानून क्या राज्यपाल की स्वीकृति के बिना भी प्रभावी माना जाएगा?

  12. क्या अनुच्छेद 145(3) के तहत किसी संवैधानिक प्रश्न पर विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट की न्यूनतम पांच न्यायाधीशों वाली पीठ का होना अनिवार्य हैं?

  13. क्या अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां सिर्फ प्रक्रिया तक सीमित हैं या substantive कानून के विपरीत आदेश भी जारी किए जा सकते हैं?

  14. क्या संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत दायर वाद के अलावा, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विवादों को निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के अन्य किसी अधिकार क्षेत्र पर प्रतिबंध हैं?


 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को विधेयक मिलने के तीन महीने के अंदर निर्णय लेना होगा. अगर विधानसभा दोबारा वही विधेयक पारित कर भेजती है तब राज्यपाल को एक महीने के अंदर मंजूरी देनी होगी. वहीं राष्ट्रपति को भी उस विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा.

 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि तीन महीने से ज्यादा की देरी हुई तो उसके उचित कारण दर्ज किए जाने चाहिए और संबंधित राज्य को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए. बेंच ने यह निर्देश दिया है कि राज्यपाल द्वारा विचारार्थ भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को उस संदर्भ की प्राप्ति की तिथि से तीन महीने के भीतर निर्णय लेना जरूरी हैं.

 


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