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रांची/डेस्क: प्रकृति का यह नवान्न पर्व वैसे तो देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है. लेकिन मिथिला इस पर्व का खास विशेष महत्व है. यह पर्व खेती-किसानी से जुड़ा है. बता दें, नवान्न का अर्थ है नया भोजन यानी घर में नये अन्न का आगमन.
ऐसे की जाती हैं पूजा
प्रकृति का यह पर्व मिथिला की पारिवारिक परंपरा का भी द्योतक है. आश्विन माह की संक्रांति के दिन, जिसे गबाहा संक्रांति भी कहा जाता है, 14 चिपड़ी बनाकर इसकी तैयारी शुरू हो जाती है. यह खास तरह के उपले घर की कुंवारी लड़की बनाती है. नवान्न के दिन इसी उपले से कुल देवी के सामने अग्नि जलाई जाती है. नवान्न के दिन सुबह-सुबह परिवार का एक पुरुष खेत से जाता है और धान काटकर घर वापस आता है. मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि घर से निकलते समय और खेत से धान काटकर लाते समय वह रास्ते में न तो कुछ बोलता है और न ही किसी से बात करते है. वह खेत से काटे गए धान को देवी के अर्पित करते है. घर की महिलाएं उस धान से चूड़ा तैयार करती है.
ऐसे बनता हैं प्रसाद
पांच घानी यानी धान को पांच बार ओखली में डालकर तैयार की जाती है. इससे बने चूड़े में कच्चा दूध और गुड़ मिलाकर प्रसाद तैयार किया जाता है, जिसे घर के सभी सदस्य अग्नि देवता को अर्पित करते है. ऐसा माना जाता है कि अग्नि को अर्पित किया गया भोजन सीधे देवता तक पहुंचता है. नये बने चूड़े में दही और गुड़ मिलाकर अलग से प्रसाद तैयार किया जाता है, जिसे घर के बाकी सदस्यों दिया जाता है. इस दिन ब्राह्मणों को इसी नवनिर्मित चूड़े से भोजन कराया जाता है. नवान्न के दिन शाम को परिवार के सदस्य नए चावल से बने चावल खाते है. इस दिन घर में रोटी न बनाने की भी परंपरा है. इस दिन से लोग नए अनाज का प्रयोग शुरू करते है.