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रांची/डेस्क: पाकिस्तान की टेक इंडस्ट्री इन दिनों एक बड़े झटके से जूझ रही है. दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनियों में शुमार Microsoft ने पाकिस्तान में अपने लगभग पूरे ऑपरेशन्स बंद कर दिए हैं. अब देश में सिर्फ एक ऑफिस बचा है, जहां पांच कर्मचारी कार्यरत हैं. कंपनी के इस फैसले से न केवल टेक इंडस्ट्री, बल्कि सरकार और शिक्षा क्षेत्र में भी हलचल मच गई है.
कैसे शुरू हुआ Microsoft का सफर पाकिस्तान में?
माइक्रोसॉफ्ट ने साल 1999 में पाकिस्तान में अपने ऑपरेशन्स की शुरुआत की थी. इस पहल के पीछे जव्वाद रहमान नामक टेक प्रोफेशनल की अहम भूमिका रही, जिन्हें Microsoft Pakistan का फाउंडर माना जाता है. जव्वाद रहमान ने एक भावुक LinkedIn पोस्ट में इस खबर की पुष्टि करते हुए लिखा, "एक युग समाप्त हो गया है."
आखिर क्यों लिया गया ये फैसला?
कंपनी ने इस फैसले के पीछे सीधे तौर पर कोई कारण सार्वजनिक नहीं किया है, लेकिन जानकार मानते हैं कि इसके पीछे स्थानीय राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक संकट और नीतिगत अनिश्चितता जैसे कारण प्रमुख हो सकते हैं. माइक्रोसॉफ्ट का यह कदम केवल एक कॉर्पोरेट निर्णय नहीं बल्कि पाकिस्तान के मौजूदा हालातों की गूंज भी मानी जा रही है.
अब क्या करेगा पाकिस्तान?
माइक्रोसॉफ्ट की विदाई के बाद अब पाकिस्तान को विकल्पों की तलाश करनी होगी. टेक सेक्टर, एजुकेशन, स्टार्टअप्स और सरकारी डिपार्टमेंट्स को माइक्रोसॉफ्ट की जगह नए डिजिटल टूल्स अपनाने होंगे.
संभावित विकल्प:
Google Workspace: Gmail, Google Docs, Sheets, Slides जैसी सेवाएं ऑफिस सॉफ्टवेयर के विकल्प के तौर पर अपनाई जा सकती हैं.
LibreOffice और OpenOffice: ये फ्री और ओपन-सोर्स विकल्प हैं जो बेसिक डाक्यूमेंटेशन के लिए पर्याप्त हैं.
Linux आधारित OS: विंडोज की जगह Ubuntu, Fedora या Linux Mint जैसे सिस्टम अपनाए जा सकते हैं.
चीन के क्लाउड प्लेटफॉर्म्स: Huawei Cloud, Alibaba Cloud और Tencent Cloud जैसे विकल्पों पर पाकिस्तान निर्भर हो सकता है.
टेक इंडस्ट्री में मायूसी
Microsoft की विदाई का असर पाकिस्तान की टेक इंडस्ट्री पर गहरा पड़ा है. नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है और विदेशी निवेशकों का भरोसा डगमगाने की आशंका है. कई स्टार्टअप्स और डिजिटल एजेंसियां इस फैसले से प्रभावित हो सकती हैं.
अब क्या कोई उम्मीद बची है?
LinkedIn पर अपनी पोस्ट में जव्वाद रहमान ने पाकिस्तान की सरकार और आईटी मंत्री से अपील की है कि वे माइक्रोसॉफ्ट के ग्लोबल नेतृत्व से संपर्क करें. उनका मानना है कि संवाद से कोई मिड-वे सॉल्यूशन निकल सकता है और कंपनी की आंशिक मौजूदगी बनी रह सकती है.
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