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झारखंड


स्मृतिशेष: डीसी केबी सक्सेना और दारोगा किचिंगिया की पहल पर शिबू सोरेन का वह आत्मसमर्पण

धनबाद से बदली थी दिशोम गुरु की रणनीतिक धारा
स्मृतिशेष: डीसी केबी सक्सेना और दारोगा किचिंगिया की पहल पर शिबू सोरेन का वह आत्मसमर्पण

न्यूज11 भारत 

धनबाद/डेस्क:  शिबू सोरेन के आंदोलन की धमक धनबाद प्रशासन से होकर राज्य और केंद्र सरकार की गलियारों तक पहुंची.  धनबाद प्रशासन की पेशानी पर भी बल पड़ने लगे. शिबू सोरन का महाजनी प्रथा के विरोध का आंदोलन तीव्र होता गया. क्षेत्र के बड़े खेतिहरों का टुंडी और आस - पास के गांवों से पलायन शुरू हुआ. प्रशासन पर दबाव बढ़ा तो इससे निबटने के उपाय किए जाने लगे. प्रशासनिक और राजनीतिक, दोनों पहल की शुरूआत हुई. धनबाद के तत्कालीन डीसी कृष्णबल्लभ सक्सेना ( केबी सक्सेना) को ऑपरेशन शिबू सोरेन की कमान दी गई. अपनी ईमानदारी और समाजवादी विचारधारा के कारण केबी सक्सेना धनबाद में पहले से लोकप्रिय थे. समाज के अंतिम वर्ग तक सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचाने के हिमायती होने के कारण केबी सक्सेना की शिबू सोरेन भी इज्जत करते थे. टुंडी थाना के तत्कालीन दारोगा  बी किचिंगिया का भी साथ केबी सक्सेना को मिला. बी कीचिंगिया और शिबू सोरेन के बीच भी अच्छे संबंध थे. पहल शुरू हुई और बातचीच के कई दौर चले. जानकार बताते हैं कि वार्ता सकारात्मक होती गई. शिबू सोरेन सार्वजनिक जीवन में आने को राजी हो गए. यह पहल झारखंड आंदोलन के इतिहास के एक नया अध्याय बन गया.

यही कारण है कि झारखंड आंदोलन के इतिहास में डीसी  केबी सक्सेना और दारोगा बी किंचिंगिया  का नाम हमेशा याद किया जाएगा. 

कैसे  हुई पहल

70 के दशक में जब पारसनाथ के जंगलों में भूमिगत रहकर शिबू सोरेन आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे, तब उन्हें मुख्यधारा की राजनीति में लाने का  श्रेय डीसी केबी सक्सेना और दारोगा बी केंचिंगिया  को जाता है. तत्कालीन टुंडी थाना प्रभारी किचिंगिया ने संवैधानिक दायरे में रहते हुए शिबू को न केवल सरेंडर के लिए तैयार किया, बल्कि जेल जाने के बाद भी इलाके में शांति बनाए रखने के उपाय अपनाए.

टुंडी लाला टोला के रहने वाले और धनबाद बार के पूर्व महासचिव देवी शरण सिन्हा पुराने दिनों की याद ताजा करते हुए बताया कि किचिंगिया और शिबू के बीच मित्रवत संबंध थे. उस समय टुंडी के पलमा में शिबू के एक इशारे पर हजारों आदिवासियों का जुटान हो जाता था. डुगडुगी बजती थी और आदिवासी समाज के लोग परंपरागत हथियारों के साथ निकल पड़ते थे. 

 धनबाद के तत्कालीन डीसी केबी सक्सेना ने शिबू से मिलने का निर्णय लिया और किचिंगिया उन्हें पलमा पहाड़ तक लेकर गए. कई दौर की बातचीत के बाद शिबू ने सरेंडर का फैसला किया. देवी शरण सिन्हा ने बताया कि प्रशासन को आशंका थी कि अगर यह खबर फैली कि शिबू को गिरफ्तार किया गया है, तो आदिवासी समाज भड़क सकता है. ऐसे में किचिंगिया ने शिबू से लिखित में सरेंडर की पुष्टि करवाई और टेप रिकॉर्डर में उनकी अपील भी रिकॉर्ड कराई. इसमें शिबू सोरेन ने लोगों से कानून को हाथ में नहीं लेने की बात कही. यह अपील पुलिस ने गांव-गांव माइक से सुनवाई, जिससे शिबू के जेल जाने के बाद भी टुंडी की विधि-व्यवस्था नहीं बिगड़ी. इस घटना ने शिबू सोरेन के राजनीतिक जीवन में नया अध्याय जोड़ दिया.

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