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रांचीः तीन दिनों तक चलने वाला जितिया व्रत आज से नहाय-खाय के शुरू हो रहा है. नियम के अनुसार, निर्जला व्रत शुरू करने से एक दिन पहले नहाय-खाय के साथ व्रत की शुरूआत करती है. इसमें सुबह उठने के बाद स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लेती है. जितिया व्रतधारी महिलाएं सात्विक भोजन बनाती है और उसे ग्रहण करती है. कहीं-कहीं नहाय-खाय के दिन मछली और मडुआ रोटी खाने का भी रिवाज है. बता दें, इस व्रत में महिलाएं निर्जला उपवास रहकर अपने संतानों की लंबी उम्र की कामना करती है.
देश के अलग-अलग हिस्सों में इस व्रत को जिउतया, जीवित्पुत्रिका, जीमूत वाहन व्रत के नाम से जाना जाता है. यह व्रत महिलाएं खासकर अपने संतानों के लिए करती है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान में आने वाले संकट दूर हो जाते है और उसका जीवन सुखमय हो जाता है. आज शनिवार यानी 17 सितंबर को नहाय-खाय है वहीं 18 सितंबर को निर्जला उपवास रखा जाएगा. आइए जानते हैं जितिया व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत के नियम और इसे मनाने की शुरुआत कब और कैसे हुई..
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जितिया व्रत की पूजा विधि
सुबह उठने के बाद महिलाएं स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें. इसके लिए कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प अन्य समर्पित करें. व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाने की प्रथा है. इन्हें बनाने के बाद इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है. पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है. इसके पश्चात यानी पारण के बाद यथाशक्ति दान और दक्षिणा दें.
व्रत तिथि और शुभ मुहूर्त
जितिया व्रत अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है और यह व्रत 17 सितंबर 2022 को दोपहर के करीब 2.14 मिनट से शुरू होगी. अष्टमी तिथि का समापन 18 सितंबर 2022 को शाम 04.32 मिनट को होगी. जिसमें उदयातिथि के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा. इस व्रत का पारण 19 सितंबर 2022 को सुबह 6.10 के बाद किया जाएगा.
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जीवित्पुत्रिका व्रत की शुरुआत
इस व्रत के पीछे एक ऐतिहासिक कहानी है. कहा जाता है महाभारत के युद्ध के समय अपने पिता की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा बेहद नाराज हुए. इसी गुस्से में वह पांडवों के शिविर में घुस गए. शिविर के अंदर उस वक्त 5 लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा को लगा कि, वो लोग पांडव हैं और अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उन्होंने उन पांचों को मार डाला. हालांकि असल में वह द्रौपदी की पांच संताने थी. इस बात की खबर जब अर्जुन को मिली तो उन्होंने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उनकी दिव्यमणि छीन ली. अब अश्वत्थामा के गुस्से की आग और बढ़ चली और उन्होंने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को उसके गर्भ में ही नष्ट कर दिया. लेकिन भगवान कृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की उस अजन्मी संतान को देकर उसे फिर से जीवित कर दिया. मर कर पुनः जीवित होने की वजह से उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया. उसी समय से बच्चों की लंबी उम्र के लिए और मंगल कामना करते हुए जितिया का व्रत रखे जाने की परंपरा की शुरुआत हुई.