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रांची/डेस्क: मंईयां योजना के पीछे परेशान झारखंड को बिहार ने एक बार फिर आईना दिखाया है. जिस समय चुनावी घोषणा के तहत मंईयां योजना की शुरुआत हुई थी, उसी समय हेमंत सोरेन की सरकार ने झारखंड के पत्रकारों के लिए 7000 रुपये की पेंशन की न सिर्फ घोषणा की थी, बल्कि बाजाप्ता राज्य कैबिनेट से इसे पास भी करवा लिया था. हेमंत सोरेन की सरकार कुछ महीनें में एक साल पूरे भी कर लेगी, लेकिन पत्रकारों की पेंशन एक सपना बनी हुई है. उधर बिहार के नीतीश कुमार सरकार ने पत्रकारों के लिए बड़ा ऐलान कर दिया है.
हाल में ही झारखंड से बेहतर फ्री बिजली ऑफर की घोषणा करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले पत्रकारों की पेंशन को ढाई गुणा बढ़ाने का ऐलान किया है. नीतीश कुमार ने शनिवार को ऐलान किया कि राज्य के पात्र पत्रकारों की पेंशन 6,000 रुपये से बढ़ाकर 15,000 रुपये की जायेगी. इतना ही नहीं, पत्रकार की मृत्यु होने पर उसके आश्रित को जीवनभर 10,000 रुपये मासिक पेंशन भी मिलेगी. अब तक पत्रकारों को 6000 रुपये पेंशन मिलती थी,जबकि उसकी मृत्यु पर उसके आश्रित के जीवनपर्यन्त प्रतिमाह 3,000 पेंशन मिलती थी.
झारखंड में अब तक क्यों नहीं लागू हो पायी पत्रकारों की पेंशन?
बिहार ही नहीं, देश के कई राज्यों में पत्रकारों के लिए बेहतर पेंशन योजनाएं लागू हैं. झारखंड राज्य के गठन हुए 25 साल हो चुके हैं. लेकिन इतने लम्बे इन्तजार के बाद भी पत्रकारों को सिर्फ आश्वासन मिला है. पेंशन नहीं. हेमंत सोरेन जब 2024 विधानसभा चुनाव के समय पत्रकारों के लिए पेंशन की घोषणा की तब थोड़ी उम्मीद बंधी भी थी. इसके बाद फिर से सरकार बनने के बाज हेमंत सोरेन ने जब इसे कैबिनेट से मंजूर करवा लिया तब तो पत्रकारों को लगा कि अब उनके पेंशन का सपना पूरा हो गया है. लेकिन झारखंड के पत्रकारों का यह दुर्भाग्य है कि पत्रकारों की पेंशन योजना अभी भी फाइलों में भटक रही है. खबर तो यह है कि सरकार अभी यह तय नहीं कर पायी है कि यूट्यूबर को पत्रकार माना जाये या नहीं. जब दूसरे राज्यों में पत्रकारों को पेंशन मिल ही रही है. दूसरे राज्यों की सरकारें उन्हें किस आधार पर पेंशन दे रही हैं, क्या वहां की गाइडलाइन हमारे राज्य की सरकार के लिए नाकाफी है?
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