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रांची/डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए स्पष्ट किया है कि यदि किसी संपत्ति की बिक्री से संबंधित अनुबंध या विक्रय विलेख को निष्पादन की तारीख से चार महीने के भीतर पंजीकरण नहीं कराया जाता है, तो उसे रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1908 के तहत वैध नहीं माना जाएगा. इसका मतलब यह है कि संपत्ति के लेन-देन के लिए कानून द्वारा निर्धारित यह समयसीमा बहुत जरूरी है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अगर समय पर पंजीकरण नहीं कराया गया, तो संपत्ति का मालिकाना हक कमजोर हो सकता है और कानूनी दिक्कतें आ सकती हैं. कोर्ट ने इस निर्णय के माध्यम से सभी को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि संपत्ति के लेन-देन को सही तरीके से और समय पर पंजीकृत करना आवश्यक है ताकि किसी भी प्रकार की विवाद की स्थिति से बचा जा सके. इसलिए, सभी को पंजीकरण की प्रक्रिया को गंभीरता से लेना चाहिए.
यह टिप्पणी शीर्ष अदालत ने महनूर फातिमा इमरान व अन्य बनाम विश्वेश्वर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा. लि. व अन्य [2025 INSC 646] मामले में दी. इस मामले में एक बहुत पुराने बिक्री अनुबंध की वैधता पर सवाल उठाया गया था. अनुबंध को समय पर पंजीकृत नहीं कराया गया था, जिससे उसकी वैधता पर संदेह पैदा हुआ. बाद में, पक्षकारों ने इस अनुबंध को “वैध” घोषित कराने का प्रयास किया, लेकिन अदालत ने इस पर विचार किया. अदालत ने यह स्पष्ट किया कि बिना पंजीकरण के बिक्री अनुबंध की वैधता नहीं हो सकती.
पंजीकरण अधिनियम के कानूनी प्रावधान
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने हाल ही में रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1908 की धारा 23 और 34 का उल्लेख करते हुए कहा कि अगर कोई दस्तावेज अचल संपत्ति से संबंधित अधिकार, स्वामित्व या हित बनाता है, तो उसका पंजीकरण करना आवश्यक है. पंजीकरण की यह प्रक्रिया दस्तावेज के निष्पादन की तारीख से चार महीने के भीतर पूरी करनी होती हैं. अगर कोई व्यक्ति इस समय सीमा को पार कर देता है, तो उस दस्तावेज की वैधता समाप्त हो जाती है. इसका मतलब है कि बिना पंजीकरण के, व्यक्ति के पास उस संपत्ति पर अधिकार नहीं रह जाएगा. इस प्रकार, संपत्ति से जुड़े दस्तावेजों का समय पर पंजीकरण बहुत जरूरी है, ताकि किसी भी कानूनी विवाद से बचा जा सके. यह निर्णय संपत्ति कानून की महत्वपूर्ण बातें स्पष्ट करता है.