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रांची/डेस्क: पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन पर अपनी गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है. उन्होंने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेता, पूर्व मुख्यमंत्री आदरणीय दिशोम गुरु शिबू सोरेन जी के निधन की ख़बर से मर्माहत हूं. उनका पूरा जीवन सामाजिक न्याय, आदिवासी अधिकार और जनहित के लिए समर्पित रहा. महाजनी विरुद्ध आंदोलन से लेकर झारखंड निर्माण तक वो लगातार जनता के साथ जुड़कर, जनता की सेवा में लगे रहे. वर्षों पहले मुझे भी उनके साथ जुड़कर कार्य करने का मौका मिला और आंदोलन के दौरान संघर्ष के साथ किस तरीके से समाज का नेतृत्व करना चाहिए मैंने उनसे सीखा.
सुदूरवर्ती जंगलों में लोगों को संगठित करने के लिए उनके साथ बहुत बार गांव के बीच में लोगों से जनसंवाद करने का मौका मिला. उन दिनों में पुलिस जुल्म के खिलाफ, विस्थापितों की समस्यायों को लेकर, मुआवजा को लेकर, पुनर्वास को लेकर, विस्थापितों के ऊपर होने वाले दुर्व्यवहार को लेकर लगातार आंदोलन होते रहता था. उस समय मुझे उन्हें नजदीक से समझने का मौका मिला.
मुझे याद है, चाहे अविभाजित सिंहभूम हो या चाहे संताल में कोई कार्यक्रम हो तो सभा करने के लिए डुगडुगी बजाना, नगाड़ा बजाना और उसके आवाज़ पर लोगों का एकत्रित हो जाना, ऐसी चीजों को मैंने उनके साथ नजदीक से देखा है.
आदिवासियों की जमीन से संबंधित विषयों पर जहां वो हमेशा इस बात की चर्चा करते थे कि जमीन से जुड़कर ही आदिवासी जी सकता है. जमीन से विच्छेद न हो इस बात का ध्यान हमेशा रखना चाहिए. आज उनके निधन से एक भारी रिक्तता का अनुभव कर रहा हूं. मुझे याद है कि टेल्को के खडंगाझार, जो रैयती मौजा के अंदर एक टोला हुआ करता था, वहां पर पदयात्रा करते हुए सभा का आयोजन किया गया था. उन दिनों आदरणीय शिबू सोरेन जी की सभा की हर जानकारी ख़ुफ़िया विभाग के द्वारा रखी जाती थी. खुफिया विभाग के अधिकारी उनके हर सभा में मौजूद रहते थे. ऐसे करते-करते झारखंड आंदोलन को एक नया नेतृत्व शिबू सोरेन जी ने दिया. अविभाजित सिंहभूम में कई उदहारण है, जहां गाँव-गाँव सुदूरवर्ती जंगलों में लोगों से जनसंवाद करते हुए उन्होंने आंदोलन का नेतृत्व किया.
झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेता के रूप में, विषम परिस्थियों में भी वे नेतृत्व करते रहे. आज वे हमारे बीच में नहीं हैं, यह हमारे लिए दुःख का विषय है, उनकी कमियां हमें खलती रहेगी.
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