अरुण कुमार यादव/न्यूज़11भारत
गढ़वा/डेस्क
वह भी चुनावी वर्ष था, जब पीएम नरेंद्र मोदी ने गढ़वा जिले के मंडल ग्राम में अधूरी पड़ी उत्तर कोयल जलाशय परियोजना को पूरा करने के लिए ऑनलाइन शिलान्यास किया था. अब यह भी एक चुनावी साल है. इन पांच सालों में इस परियोजना में एक भी ईंट नहीं जोड़ा गया. पांच साल पहले 05 जनवरी 2019 को पीएम मोदी ने पलामू के चियांकी हवाई अड्डे में आयोजित एक कार्यक्रम में उत्तर कोयल जलाशय परियोजना को पूरा करने के लिए ऑनलाइन शिलान्यास किया था,चूंकि यह परियोजना गढ़वा जिले के भण्डरिया प्रखंड के मंडल ग्राम में स्थित है. इस कारण इसे स्थानीय बोलचाल की भाषा में मंडल डैम भी कहा जाता है.
लोगों को लगा अब पूरा होगा मंडल डैम
पीएम के द्वारा शिलान्यास किये जाने के बाद लगा कि 70 के दशक में जिस परियोजना की आधारशिला रखी गयी थी, वह अब अवश्य पूरा होगा, लेकिन विडंबना ऐसी रही कि शिलान्यास करने के तकरीबन पांच साल बाद भी इस परियोजना में एक ईंट तक नहीं जुड़ पाया. हालांकि गत वर्ष पीएम मोदी ने उक्त जलाशय योजना को पूरा कराने के लिए 18361.41 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है. इसे महज एक इत्तेफाक कहें या फिर चुनावी राजनीति का हिस्सा. लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है. विरोधी दल इसे चुनावी रंग दे रहे हैं. अब जब केंद्र सरकार के द्वारा इस परियोजना को पूरा करने के लिए राशि आवंटित की गयी तो एक बार फिर इसके पूरा होने के आसार बढ़ गये हैं.
क्या है उत्तर कोयल जलाशय योजना
इस परियोजना पर काम साल 1972-73 में तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के द्वारा शुरू कराया गया था. जब 1970 में पूरे बिहार में अकाल पड़ा था तो उस अकाल व सूखा से निजात पाने के लिए इस परियोजना की परिकल्पना की गयी थी. इस परियोजना में गढ़वा जिला के भंडरिया प्रखंड के चेमो सान्या समेत 16 गांव तथा लातेहार जिला के बरवाडीह प्रखंड के तीन गांव डूब क्षेत्र में शामिल है. इन 19 गांवों में 749 परिवारों के 6013 लोग विस्थापित होंगे. इस परियोजना से एक लाख 11 हजार हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई करने एवं डैम के दोनों किनारों पर 24-24 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन करने का लक्ष्य रखा गया था.
प्रारंभ में 30 करोड़ थी प्राक्कलन लागत
जिस समय यह परियोजना प्रारंभ की गयी थी, उस समय इस परियोजना का प्राक्कलन मात्र 30 करोड़ रुपये था. साल 1985 में इसे बढ़ाकर 581 करोड़ रुपये किया गया. इसके बाद इसे बढ़ाकर 1627 करोड़ रुपये किया गया. इस परियोजना में कुल 2266.72 एकड़ वन भूमि है. पहले परियोजना में 367 मीटर की ऊंचाई में पानी जमा करने की योजना थी, बाद में इसे घटाकर 341 मीटर कर दिया गया.
अधीक्षण अभियंता की हत्या के बाद से बंद है काम
साल 1996 में परियोजना के तत्कालीन अधीक्षण अभियंता बैद्यनाथ मिश्रा की माओवादियों ने हत्या कर दी थी. उसके बाद से इस परियोजना पर काम बंद है. साल 1999 में समुचित रख-रखाव नहीं होने के कारण झाड़ियों में आग लग गयी. इसमें कई वाहन जलकर राख हो गये. लोहा चोरों ने भी परियोजना को काफी नुकसान पहुंचाया है. परियोजना के लोहे को चोरों ने काट कर स्क्रैप के भाव बाजार में बेच दिया।वही इस योजना के बारे में पलामू सांसद से पूछे जाने पर उन्होंने बताया की झारखंड सरकार डूब क्षेत्र के लोगों को मूवाबज़ा देने में कोई मदत नहीं कर रही है मैं इस मामले को केंद्र सरकार को अवगत कराया हूँ।लेकिन पलामू सांसद केवल मंडल डैम पर राजनीतिक करते है बल्कि इस पर पहल नहीं.अब देखने वाली बात यह होगी की क्या मंडल डैम के नाम पर राजनीतिक कब तक?लोगों को पानी कब?