अशिस शास्त्री/न्यूज़11 भारत
सिमडेगा/डेस्क: झारखंड का एक ऐसा जिला जो जंगलों पहाड़ों और प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा एक आदिवासी बहुल सिमडेगा जिला के कोलेबिरा गांव में दुर्गा पूजा का गौरवशाली इतिहास हैं. सिमडेगा के कोलेबिरा धर्मशाला में आजादी के पहले से ही दुर्गा पूजा हो रही हैं. पहली बार यहां सन 1941 में दुर्गा पूजा का आयोजन स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा धूमधाम हर्षोल्लास के साथ किया गया था. उस समय इस इलाके में घना वन हुआ करता था बाघ भालू आ जाया करते थे.
धर्मशाला दुर्गा पूजा का प्रारंभ कोलेबिरा थाना में अंग्रेजो के शासनकाल में पदस्थापित जमादार स्वर्गीय, हीरेन्द्र नाथ मुखर्जी, स्वर्गीय ओहदार रणबहादुर सिंह, स्वर्गीय हरिशंकर साहू, स्वर्गीय कालीचरण साहू, स्वर्गीय शिव शंकर साहू, स्वर्गीय बसंत नारायण साहू, आदि लोगों के द्वारा प्रारंभ किया गया था. उस वक्त लोग थाना परिसर में झोपड़ी बनाकर मां दुर्गा की पूजा किया करते थे. मां दुर्गा की पूजा होने से गांव के लोग खुशहाल रहने लगे उसके बाद अंग्रेजों के निर्देश पर सुरक्षा की दृष्टि को देखते हुए दुर्गा पूजा का आयोजन मौसी बाड़ी परिसर में खपरैल घर में किया जाना प्रारंभ हुआ.

कुछ वर्षों तक मौसी बारी परिसर में दुर्गा पूजा हुआ उसके बाद के भंवर पहाड़गढ़ के 33 मौजा के जमींदार ओहदार रण बहादुर सिंह के द्वारा कोलेबिरा थाना मोड़ के समीप दुर्गा पूजा करने के लिए 6 डिसमिल जमीन दी गई. तब से आज तक उसी स्थान में लोग प्रतिवर्ष हर्षोल्लास व धूमधाम के साथ दुर्गा पूजा मनाते आ रहे हैं. पहले इस जगह लोग खपरैल झोपड़ी बनाकर दुर्गा पूजा किया करते थे. सन 1998 में स्थानीय सांसद कड़िया मुंडा के द्वारा सामुदायिक भवन का निर्माण कराया गया. तबसे उसी भवन में प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा हो रही हैं. दुर्गा पूजा में मां दुर्गा की मूर्ति बंगाल राज्य के पुरूलिया जिला के डिमडिया निवासी स्वर्गीय वृंदावन सूत्रधार ने यहां आकर मूर्ति बनाना प्रारंभ किया. उनके मृत्यु के बाद उनके पुत्र स्वर्गीय अनिल सूत्रधार एवं स्वर्गीय शिबू सूत्रधार ने मूर्ति बनाए.
इन दोनों के मृत्यु के बाद वृंदावन सूत्रधार की तीसरी पीढ़ी स्वर्गीय अनिल सूत्रधार का पुत्र अश्विनी सूत्रधार, तुलसी सूत्रधार एवं ध्रुवा सूत्रधार के द्वारा वर्तमान में मूर्ति बनाई जाती हैं. वही पुरोहित की भूमिका में 1941 में सर्वप्रथम लंबोदर पति रहे. उसके बाद 1944 से सिमडेगा के आचार्य स्वर्गीय रमापति शास्त्री यहां पूजा करना शुरू किए. इनके बाद 1968 से उनके पुत्र स्वर्गीय योगेश शास्त्री ने पुरोहित की भूमिका निभाई. इनके निधन के बाद 1992 से इनके पुत्र स्व आनंद शास्त्री ने यहां पुरोहित की भूमिका निभाई. वर्तमान समय में पलामू लेस्लीगंज के पुरोहित शंकर दयाल गिरी पुरोहित की भूमिका निभा रहे हैं. श्रोता पुरोहित की भूमिका केशव मिश्रा के द्वारा निभाई जाती हैं. वहीं ठाकुर की भूमिका पूर्व में स्वर्गीय गजेंद्र ठाकुर के द्वारा निभाया जाता था. वर्तमान समय में स्वर्गीय गजेंद्र ठाकुर के पौत्र सुदामा ठाकुर के द्वारा निभाई जा रही हैं.
लोगों का कहना है कि शुरुआती सन 1940 से 50 तक में दुर्गा पूजा महज ₹30 ₹40 में होती थी. तत्पश्चात 60 के दशक में दो से 300 रूपये में संपन्न हो जाती थी. वर्तमान समय में बढ़ती महंगाई के कारण दुर्गा पूजा संपन्न कराने में दो से ढाई लाख की खर्च आती हैं. हर साल की भांति इस साल भी वर्तमान में युवा पूजा समिति के सदस्य पूजा एवं मेले की तैयारी में लगे हुए हैं. प्रत्येक वर्ष स्थानीय लोगों के द्वारा सड़क किनारे मेले के रूप में मिठाई खिलौने ठेले खोमचे के दुकान सजाए जाते हैं. क्षेत्र का यह पंडाल आस्था का केंद्र हैं. जहा प्रतिवर्ष हजारो की संख्या में भक्त मनोकामनाएं के पूर्ण होने की याचना करते हैं.