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रांची/डेस्क: भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा का एक प्रतिनिधिमंडल प्रदेश अध्यक्ष पवन साहू के नेतृत्व मे झारखंड के महामहिम श्रीमान संतोष गंगवार जी से औपचारिक मुलाकात की. इस अवसर पर राज्य मे किसानों की समस्याओ से महामहिम जी को अवगत कराया.
झारखंड गठन के 24 वर्ष बाद भी राज्य के किसान अपनी प्रमुख मांग को लेकर आंदोलनरत है. इसके साथ-साथ राज्य मे अतिवृष्टि से किसान की फसल बर्बाद हो रहे है. किसान त्राहिमाम - त्राहिमाम कर रहा है, आम जनता मंहगाई की मार झेल रही है . इन सबके बावजूद झारखंड सरकार मौन धारण किए हुए है.
राज्य के किसानों के प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं
- अतिवृष्टि से प्रभावित किसानों को प्रति एकड़ 20 हजार रुपए का मुआवज़ा राज्य सरकार दें.
- धान खरीद पर करोड़ो का बकाए को राज्य सरकार अविलंब किसानों को दें .
- केसीसी ऋण माफी योजना की अवधि को 31 मार्च 2020 से बढ़ाकर 2025 या सरकार अपने कार्यकाल तक करें .
- किसान योजना का लाभ सीधे डीबीटी माध्यम से किसानों तक मिले . बिचौलिए और ऐजेन्सी माध्यम से भ्रष्टाचार मे वृद्धि हो रहा है . इससे किसान प्रभावित हो रहे है .
- मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना को राज्य सरकार अविलंब लागू करें .
- राज्य सरकार का कृषि बजट 2025 - 2026 ( 137757 करोड़ ) मे तेजी से विकास कार्य करें .
- राज्य के लगभग 70 फीसदी आबादी कृषि कार्य करते है . फिर भी किसानों के उत्थान पर राज्य सरकार गंभीर नही है . अलग कृषि बजट से किसानों का सर्वांगीण विकास कार्य सिद्ध होगा .
- राष्ट्रीय किसान आयोग के तर्ज पर झारखंड मे भी "राज्य किसान आयोग " का गठन हो .
- किसानों के बच्चों को उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए ब्याज मुक्त ऋण की सुविधा राज्य सरकार उपलब्ध कराए .
- पीएम कृषि सिंचाई योजना के तहत हर खेत को पानी उपलब्ध कराए .
- किसानों को बाजार मूल्य पर खाद्य और बीज उपलब्ध कराए . इसके साथ-साथ उन्नत किस्म की गुणवत्ता की जांच हो .
- धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य राज्य सरकार के घटक दलो के चुनावी घोषणा-पत्र के अनुसार 2400₹ प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 3200₹ प्रति क्विंटल धान खरीद करने का वादा किया था, लेकिन मात्र 2400₹ प्रति क्विंटल ही धान खरीद पर भुगतान कर रही है. इसके साथ-साथ 60 लाख क्विंटल घान खरीद का लक्ष्य राज्य सरकार ने रखी थी, जबकि मात्र 34.7 लाख क्विंटल हीं धान की खरीद की. बाकी किसान अपने धान को बिचौलिए के माध्यम से औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर हुए. इससे साफ पता चल रहा है कि हेमंत सरकार किसान विरोधी सरकार है .