प्रशांत/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: हजारीबाग में संकुल साधन सेवी (सीआरपी) को प्रधानाध्यापक का वित्तीय प्रभार दिए जाने के बाद शिक्षा विभाग सवालों के घेरे में आ गया है। मध्य विद्यालय ओरिया सदर में सीआरपी को प्रभारी प्रधानाध्यापक का पद सौंपे जाने के फैसले पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि संविदा पर नियुक्त सीआरपी को आखिर कैसे वित्तीय प्रभार दिया जा सकता।
खतरनाक 'नजीर': क्या हजारीबाग से मिलेगा 'कानून तोड़ो' समाधान !
यह कदम एक खतरनाक 'नजीर' कायम कर सकता है। एक ओर जहां सुशासन और कानून के राज की बातें की जाती हैं वहीं दूसरी ओर ऐसे फैसले प्रशासनिक निर्णयों को विपरीत परिस्थितियों में लेने की चुनौती को और बढ़ा रहे हैं। क्या हजारीबाग से निकल रहा यह 'समाधान' शिक्षा व्यवस्था में नियमों की अनदेखी को और बढ़ावा देगा? क्या नियम-कानून को ताक पर रखकर समाधान जायज हो सकते हैं? विभाग को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी निर्णय कानून और नियमों के दायरे में ही लिए जाएं।
नियमों की अनदेखी या राजनीतिक दबाव!
यह निर्णय न केवल सरकारी नियमों का स्पष्ट उल्लंघन प्रतीत होता है बल्कि यदि इसमें किसी प्रकार की वित्तीय अनियमितता होती है तो इसकी जवाबदेही कौन लेगा? जिला शिक्षा अधीक्षक (डीएसई) और प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी (बीईईओ) पर सवाल उठना लाजिमी है. सूत्रों की मानें तो मध्य विद्यालय ओरिया में प्रभार न दिए जाने के मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप की बात सामने आ रही है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या अधिकारी राजनीतिक दबाव में आकर कानून सम्मत फैसले नहीं ले पा रहे हैं? यदि ऐसा है तो उनके पद पर बने रहने का क्या औचित्य है?
विवादित विद्यालयों का 'अजीब' समाधान !
जिले के कई विद्यालयों में प्रधानाध्यापक का प्रभार लेने को लेकर पहले से ही विवाद चल रहा है. अब सीआरपी को प्रभार दिए जाने की इस 'वैकल्पिक व्यवस्था' को कुछ लोग विवादित विद्यालयों के लिए एक 'रास्ता साफ' करने के तरीके के रूप में देख रहे हैं. यह सुझाव दिया जा रहा है कि जिन विद्यालयों में प्रभार नहीं लिया जा रहा है वहां भी संकुल के सीआरपी को ही प्रभार सौंप देना चाहिए. भले ही यह सरकारी नियमों का उल्लंघन ही क्यों न हो. से जुड़े विवादित विद्यालयों के लिए यह 'हजारीबाग मॉडल वास्तव में प्रासंगिक है?