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नहीं रहे झारखंड के कद्दावर नेता समरेश सिंह, राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर

नहीं रहे झारखंड के कद्दावर नेता समरेश सिंह, राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर
न्यूज11 भारत




रांचीः राज्य के कद्दावार नेता (बोकारो के पूर्व विधायक सह पूर्व मंत्री) समरेश सिंह का 01 दिसंबर (गुरुवार) सुबह निधन हो गया. उन्होंने बोकारो सेक्टर-4 सिटी सेंटर स्थित आवास में अंतिम सांस ली. जानकारी के अनुसार, वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे. रांची के मेदांता अस्पताल में इलाज के बाद एक दिन पहले ही उन्हें घर लाया गया था. इधर, उनके निधन की खबर के बाद राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर है. वहीं राज्य में पक्ष-विपक्ष के सभी नेता उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे है. 

 

पिछले कई महीनों से चल रहे थे बीमार

 

आपको बता दें, राज्य के पूर्व मंत्री समरेश सिंह को समर्थक प्यार से दादा कहा करते थे, वे बोकारो ही नहीं बल्कि पूरे राज्य के एक लोकप्रिय नेता थे. उन्होंने अपनी राज्य के विकास के लिए काफी योगदान दिया था. जानकारी के अनुसार, पिछले कुछ महीनों से उनकी तबीयत खराब चल रही थी. जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए बीजीएच अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वहां के डॉक्टरों ने उन्हें बेहतर इलाज के लिए रांची रिम्स रेफर किया. लेकिन रिम्स में भी उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ जिसके बाद उन्हें रांची के ही ही मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां ठीक होने के बाद उन्हें घर वापस लाया गया था. 

 


 

श्रद्धांजिल दे रहे राज्य के नेता

 

राज्य के राजनीतिक गलियारों में पूर्व विधायक सह मंत्री पूर्व मंत्री समरेश सिंह के निधन की खबर के बाद शोक की लहर है. राजनीतिक दलों के नेता उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे है. उनके इस तरह दुनिया छोड़कर चले जाने से समर्थकों को भी गहरा धक्का लगा है. क्षेत्र के लोग उनके आवास पर पहुंच रहे है और पूर्व मंत्री समरेश सिंह दोनों बेटे सिद्धार्थ सिंह संग्राम सिंह और बहू श्वेता सिंह, परिंदा को संत्वाना दे रहे है. समरेश सिंह के बड़े बेटे राणा प्रताप अमेरिका में रहते है. जानकारी के अनुसार, वे बोकारो पहुंचने वाले है. 

 

BJP के संस्थापक सदस्यों में रहे है समरेश सिंह

 

बोकारो के पूर्व विधायक सह पूर्व मंत्री समरेश सिंह बीजेपी के संस्थापक सदस्य में से एक है. बाकोरो के लोग सहित समर्थक उन्हें प्यार से दादा कहते हैं. उन्होंने साल 1977 में बोकारो विधानसभा में पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में जीत हासिल की थी. कहा जाता है कि मुंबई में 1980 में आयोजित बीजेपी के प्रथम अधिवेशन में कमल निशान का चिह्न रखने का सुझाव उन्होंने ही दिया था, जिसे केंद्रीय नेताओं ने अपनी मंजूरी दी थी. इसके बाद उन्हें साल 1977 के चुनाव में कमल निशान पर ही जीत मिली थी. वहीं, 1985 और 1990 में वे बोकारो से विधायक निर्वाचित हुए. इससे पहले 1985 में इंदर सिंह नामधारी के साथ मिलकर समरेश सिंह ने बीजेपी में विद्रोह कर 13 विधायकों के साथ संपूर्ण क्रांति दल का गठन किया. हालांकि कुछ दिनों के बाद ही संपूर्ण क्रांति दल का विलय बीजेपी में कर दिया गया.

 


 

2014 के लोकसभा चुनाव में मिली थी हार

 

साल 1995 में उन्हें बीजेपी की टिकट नहीं मिला जिसके बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन चुनाव में वे जीत नहीं सकें. वहीं 2000 में झारखंड जब एक अलग राज्य बना, उस वक्त उन्होंने झारखंड वनांचल कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे. नए झारखंड राज्य की स्थापना के बाद वे राज्य के पहले विज्ञान और प्रद्योगिकी मंत्री नियुक्त किए गए. 2009 में वे झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर विधायक बने. इसके बाद झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर ही आखिरी बार 2014 में रमरेश सिंह ने लोकसभा के चुनावी मैदान में अपनी किस्मत अजमाने के लिए उतरे, लेकिन उन्हें हार मिली. 
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