प्रशांत शर्मा/न्यूज11 भारत
हजारीबाग/डेस्कः सदर प्रखंड अंतर्गत बड़ासी में 23 एकड़ रैयती जमीन को कभी वन भूमि तो कभी गैर मजरुवा खास जमीन बताकर पारिवारिक नामांतरण का मामला रद्द करना सदर सदर अंचल अधिकारी को महंगा पड़ गया. मामले में हाई कोर्ट में उन्हे हाजिर होना पड़ा. कोर्ट ने अधिकारी को सख्त निर्देश दिया की दस दिनों के अंदर मामले का निबटारा कर हाई कोर्ट को सूचित करें.
पूरा मामला
पूरा मामला wpc 987/22 से जुड़ा है. यह मामला शिमला में तैनात उप जनगणना निदेशक सत्येंद्र गुप्ता जो बड़ासी के मूल निवासी हैं से जुड़ा है. उनकी पैतृक जमीन का कुछ हिस्सा सालो पूर्व वन विभाग ने अधिग्रहित किया था. इसके बाद उनके हिस्से में 23.5 एकड़ जमीन बची थी. इस भूमि का रसीद भी वे नियमित रूप से 1985 तक अंचल से कटवाते रहे. यह जमीन उनके दादी के नाम से थी. दादी के निधन के उपरांत उन्होंने अपने तीनों भाइयों के नाम से पारिवारिक नामांतरण के लिए अंचल में आवेदन किया.
अंचल ने इस आवेदन को यह कहते हुए निरस्त कर दिया की यह वन भूमि है. आरोप के मुताबिक नामांतरण के लिए अंचल से पैसे की मांग की गई थी. इसके बाद आवेदक ने एसी के यहां पुनर्विचार अपील दायर की. एसी(अपर समाहर्ता) ने इस भूमि को वन भूमि नही बताकर जीएम खास लैंड बता कर अपील को खारिज कर दिया. इसके बाद आवेदक ने डीसी के यहां अपील की.
डीसी ने इस जमीन को रैयती जमीन बताए हुए नामांतरण करने का निर्देश दिया. डीसी के निर्देश के बावजूद अंचल ने पुनः नामांतरण बाद को खारिज कर दिया था. इस मामले को ले उप निदेशक जनगणना ने हाई कोर्ट का रुख किया था. जिसपर मंगलवार को अदालत ने अंचलाधिकारी को हाजिर होने का निर्देश दिया था.