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झारखंड


रथ यात्रा: श्रद्धा, आस्था और पर्यटन का संगम

रथ यात्रा: श्रद्धा, आस्था और पर्यटन का संगम

न्यूज11 भारत


रांची/डेस्कः झारखंड में कई मठ, मंदिर, मस्जिद और गिरिजाघर हैं जो एक साथ आस्था, श्रद्धा और पर्यटन के केंद्र हैं. रांची का जगन्नाथ मंदिर उन सब में सर्वोपरि स्थान रखता है. एक तरफ जहां मंदिर में दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं, वहीं पर्यटन के लिहाज से भी ये परिसर अपनी पहचान बनाता जा रहा है. लगभग 350 साल पुराने इस मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने किया था. मंदिर बड़कागढ़ रियासत के उदयपुर परगना में स्थित है. मंदिर का निर्माण पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर किया गया है. एक छोटी पहाड़ी पर अवस्थित इस मंदिर को दूर से ही देखा जा सकता है. मंदिर परिसर की पहाड़ी में सैकड़ों घने वृक्ष हैं जो अन्यत्र मनोरम हैं. बताया जाता है कि जबसे इस मंदिर का निर्माण हुआ, तबसे लेकर अब तक मंदिर की संरचना में कई बार परिवर्तन किये गये. आज इसमें कई आधुनिक सुधार किये गये हैं जिससे आप सीधे मंदिर परिसर के समीप वाहन लेकर पहुंच सकते हैं. 

 

रथ यात्रा

मंदिर में यूं तो हर दिन भक्तों का तांता लगा रहता है. लेकिन रथ यात्रा के दिन यहां हजारों की संख्या में भक्त उमड़ते हैं. हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन भगवान अपनी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र स्वामी के साथ आम लोगों को मंदिर परिसर से बाहर आकर दर्शन देते हैं. फिर भक्त गण उन्हें रथ में बिठाकर मौसीबाड़ी तक पहुंचाते हैं. इसे रथ यात्रा कहा जाता है. रथ यात्रा के दौरान रथ को खिंचने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है, और हर भक्त अपने भगवान को अपने हाथों से मौसीबाड़ी तक पहुंचाना चाहता है. इस दिन से अगले 9 दिनों तक यहां भव्य मेला लगता है जिसमें स्थानीय कला, संस्कृति, खान-पान और पहनावे की झलक मिलती है. इस दौरान मनोरंजन के कई साधन यहां दिखाई देते हैं. इस साल 7 जुलाई को रथ यात्रा मेला है. 

 

भगवान का एकांतवास

रथ यात्रा से ठीक 15 दिन पहले भगवान एकांतवास में चले जाते हैं. माना जाता है कि भगवान इन दिनों बीमार चल रहे होते हैं और उनकी विशेष सेवा-सुश्रुषा की जाती है. 15 दिनों के बाद वे पूरी तरह से स्वस्थ्य हो जाते हैं और फिर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं. इससे पहले उन्हें नदियों के पवित्र जल से स्नान कराया जाता है. 

 

मौसीबाड़ी

जगन्नाथ मंदिर से थोड़ी दूरी पर ही मौसीबाड़ी अवस्थित है. एक छोटी पहाड़ी पर इसे बनाया गया है. रथ यात्रा के दौरान भगवान अपनी बहन और बड़े भाई के साथ अपनी मौसी के घर में विश्राम करते हैं. ये परंपरा पुरी की परंपरा के अनुसार निभाई जाती है. जिस प्रकार पुरी में भगवान माता गुडुची के घर में विश्राम करते हैं, ठीक उसी प्रकार इस जगह भी भगवन अपनी मौसी के घर में विश्राम करते हैं. रथयात्रा के दौरान भक्त भगवान को इसी मंदिर में पहुंचाते हैं. 

 

घुरती रथ यात्रा

मौसीबाड़ी में विश्राम के बाद भगवान को फिर मुख्य मंदिर में लाया जाता है. इसे घुरती रथ यात्रा कहा जाता है. इस दिन भी भक्त भगवान को रथ में बिठाकर मुख्य मंदिर तक पहुंचाते हैं. इससे पहले मौसीबाड़ी में भगवान की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. 

 

कौन हैं भगवान जगन्नाथ

भगवान जगन्नाथ साक्षात भगवान श्रीकृष्ण हैं. सुभद्रा उनकी बहन हैं और बदभद्र उनके भाई हैं. माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद उनका हृदय नहीं जला. तब श्रीकृष्ण के पूर्व में दिये निर्देश के अनुसार अर्जुन ने उस धधकती हुई ज्वाला को समुद्र में बहा दिया. समुद्र में इस ज्वाला ने एक काष्ठ का रूप धारण कर लिया और हजारों साल बाद पुरी के तट पर जा पहुंचा. वहां के राजा को काष्ठ से भगवान की एक प्रतिमा बनावाने का आदेश सपने में मिला और राजा ने कई कारीगरों को प्रतिमा बनाने के लिए आमंत्रित किया. लेकिन कोई भी कारीगर भगवान की प्रतिमा नहीं बना सका. अंत में एक वृद्ध कारीगर अचानक वहां उपस्थित हुआ. उसने प्रतिमा बनानी इस शर्त पर स्वीकार कर ली कि वो जब तक प्रतिमा बनाएगा तब तक उसे कोई नहीं टोके. उसने एक कमरे को बंद कर प्रतिमा बनानी शुरू की. कफी दिनों तक वो बनाता रहा. उसने शुरू तो किया लेकिन वो इस असमंजस में पड़ गया कि आखिर भगवान को किस रूप में ढाला जाय. इधर जब कई दिन बीत गये तो राजा की चिंता बढ़ गई और उन्होंने अनहोनी की आशंका से दरवाजे को खोल दिया. दरवाजा खोलते ही कारीगर के रूप में उपस्थित विश्वकर्मा अंतध्यान हो गये. जब राजा की नजर उस अधूरी प्रतिमा पर पड़ी तो उन्होंने उसे फेंक देना चाहा. लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि जिस भी हाल में मैं हूं मेरी पूजा इसी रूप में की जाय. तब से भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा की पूजा इसी रूप में की जाती है.

 


 

 
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